विदेशी विनिमय दर में तीव्र उतार-चढ़ाव पर अंकुश लगाने हेतु मुद्रा को किसी दूसरी मुद्रा में बदलते समय एक अल्प दर से करारोपण की सिफारिश की जाती है, जिसे टोबिन टैक्स के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य राजस्व प्राप्ति नहीं हैं, बल्कि विदेशी विनिमय में अवैध व्यापार को तथा पूंजी के अत्यत अंतर्प्रवाह केा हतोत्साहित करना है।
पूंजी तथा मुद्रा परस्पर स्थानापन्नीय हैं, इसलिए बढ़ती स्फीति के परिणामस्वरूप पूंजी संचयन बढ़ जाता है, जिसके प्रभाव स्वरूप आर्थिक विकास दर उच्च हो जाती है, यह टोबिन प्रभाव कहलाता है। भारत में औसत विधि और बिंदु दर बिंदु विधि के अंतर्गत मुद्रास्फीति की गणना की जाती है, परंतु बिंदु दर बिंदु विधि को आर्थिक संकेतन या वास्तविक विधि के रूप में स्वीकार किया गया है।