टिकाऊ खेती की परिभाषा
1. ‘बदलती परिस्थितियों में मानव सकी बढ़ती भोजन मांग की आपूर्ति हेतु शस्यन/कृषि प्रणाली (Cropping/Farming Systems) को इस प्रकार व्यवस्थित करना, ताकि पर्यावरण (Environment) एवं पारिस्थितिकी (Ecosystem) का संतुलन बना रहे बिगड़े नहीं, टिकाऊ (समगतिशील) खेती कहते हैं।
2. ‘कृषि संसाधनों का सफलतम प्रबंध करना, ताकि नई-नई आवश्यकताओं की पूर्ति हो, साथ ही पर्यावरण सुधरे अर्थात् गिरावट न आये और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा हो सके।
3. ‘बदलते पर्यावरण अर्थात् धरती के तापक्रम में, वृद्धि, समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी एवं ओजोन की परत में क्षति आदि नई उत्पन्न बढ़ती आबादी को अन्य खिलाने के लिए उत्पादकता के स्तर पर क्रमागत वृद्धि करना ही टिकाऊ खेती है।
4. ‘कृषि एवं प्राकृतिक संसाधनों का सफल प्रंबध करना, ताकि निरंतर फसल उत्पादन में वृद्धि से मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हो, साथ ही पर्यावरण सुधरे और प्राकृतिक संसाधनों को भविष्य में सुरक्षित रख सकें, टिकाऊ खेती कही जाती है।
5. ‘वह खेती, जो मानव की वर्तमान एवं भावी पीढ़ी की अन्न, चारे, वस्त्र तथा ईंधन की आवश्यकताओं को पूरा करे जिसमें परंपरागत (ITK-किसानी अनुभव) विधियों एवं नई तकनीकों का समावेश हो, भूमि पर दबाव कम पड़े, जैव-विविधता नष्ट न हो, रसायनों का कम प्रयोग, जल एवं मृदा प्रबंध सही हो, टिकाऊ खेती कहलाएगी’।