Explanation : ऊधो मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं। हंससुता की सुन्दर कगरी और द्रुन की छांही। इन पंक्तियों में श्रृंगार रस है। श्रृंगार रस की परिभाषा अनुसार – जहां काव्य में 'रति' नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर रस में परिणत
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