Explanation : अभी तो मुकुट बंधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ, खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन—शून्य कपोल, हाय रुक गया यही संसार बना सिन्दूर अनल अंगार वातहत लतिका वह सुकुमार पड़ी है छिन्नाधार। इस पंक्तियों में करुण रस है। करुण रस की प
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