Explanation : 'राम को रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परिछाही' में श्रृंगार रस है। श्रृंगार रस की परिभाषा अनुसार – जहां काव्य में 'रति' नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर रस में परिणत होता है वहां श्रृंगार रस होता है।
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