अष्टांगिक मार्ग के विषय में महात्मा बुद्ध आनंद से कहते हैं कि 'हे आनंद, इस समय मैंने भी यह कल्याणवर्त्य अर्थात् कल्याणमित्र स्थापित किया है जो एकांत निर्वेद के लिए, विराग के लिए, निरोध के लिए, उपशमन के लिए, अभिज्ञा के लिए, संबोधि के लिए और निर्वाण के
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