राज्य सूचना आयोग केंद्रीय सूचना आयोग की तरह एक सांविधिक एवं स्वायत्तशासी निकाय हे। राज्य सूचना आयोग में एक राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं आवश्यकतानुसार (अधिकतम 10) सूचना आयुक्त होंगे, जिनकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा निम्नलिखित समिति की सिफारिश पर की जाएगी।
(i) मुख्यमंत्री — समिति के अध्यक्ष।
(ii) विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता।
(ii) मुख्यमंत्री द्वारा मनोनीत केबिनेट मंत्री।
इनकी योग्यताएं एवं अयोग्यताएं वही हैं जो केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त व अन्य सूचना आयुक्तवों के लिए निर्धारित हैं।
पदावधि – सभी के लिए पद ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष या 65 वर्ष तक की आयु जो भी पहले हो।
शपथ ग्रहण – राज्यपाल या उनके द्वारा इस हेतु नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष शपथ ग्रहण की जाएगी।
त्याग-पत्र – राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा।
वेतन – राज्य मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन राज्य निर्वाचन आयुक्त के समान होगा। अन्य सूचना आयुक्तों का वेतन राज्य के मुख्य वेतन सचिव के बराबर होगा।
पद से हटाया जाना – मुख्य सूचना आयुक्त या अन्य सूचना आयुक्तों को साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर राज्यपाल द्वारा कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व हटाया जा सकेगा।
आयोग के कार्य व शक्तियां
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 18, 19 एवं 20 में सूचना आयोग के कृत्य एवं शक्तियों का वर्णन हैं। राज्य सूचना आयोग के कार्य व शक्तियां इस प्रकार है–
1. आयोग का यह दायित्व है कि वे किसी व्यक्ति से प्राप्त निम्न जानकारी एवं शिकायतों का निराकरण करें :
(क) जन-सूचना अधिकारी की नियुक्ति न होने के कारण किसी सूचना को प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा हों,
(ख) उसे चाही गयी जानकारी देने मना कर दिया गया हो,
(ग) उसे चाही गयी जानकारी निर्धारित समय में प्राप्त न हो पायी हो,
(घ) यदि उसे लगता हो कि सूचना के एवज में मांगी फीस सही नहीं है,
(च) यदि उसे लगता है कि उसके द्वारा मांगी गयी सूचना अपर्याप्त, झूठी या भ्रामक है, तथा,
(झ) सूचना प्राप्ति से संबंधित कोई अन्य मामला।
2. यदि किसी ठोस आधार पर कोई मामला प्राप्त होता है तो आयोग ऐसे मामले की जांच का आदेश दे सकता है (स्व-प्रेरणा शक्ति)।
3. जांच करते समय, निम्न मामलों के संबंध में आयोग को दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती हैं।
(क) वह किसी व्यक्ति को प्रस्तुत होने एवं उस पर दबाव डालने के लिए सम्मन जारी कर सकता है तथा मौखिक या लिखित रूप से शपथ के रूप साक्ष्य प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है,
(ख) किसी दस्तावेज को मंगाना एवं उसकी जांच करना,
(ग) एफिडेविट के रूप में साक्ष्य प्रस्तुत करना,
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से सार्वजनिक दस्तावेज को मंगाना,
(च) किसी गवाह या दस्तावेज को प्रस्तुत करने या होने के लिए सम्मन जारी करना, तथा,
(झ) कोई अन्य मामला जिस पर विचार करना आवश्यक हो।
4. शिकायत की जांच करते समय, आयोग लोक प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी दस्तावेज या रिकार्ड की जांच कर सकता है तथा इस रिकॉर्ड को किसी भी आधार पर प्रस्तुत करने से इंकार नहीं किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, जांच के समय सभी सार्वजनिक दस्तावेजों को आयोग के सामने प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है।
5. आयोग को यह शक्ति प्राप्त है कि वह लोक प्राधिकारी से अपने निर्णयों का अनुपालन सुनिश्चित करें, इसमें सम्मिलित हैं :
राज्य की राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था
(क) किसी विशेष रूप में सूचना तक पहुंच,
(ख) जहां कोई भी जन सूचना अधिकारी नहीं है, वहां ऐसे अधिकारी को नियुक्त करने का आदेश देना,
(ग) सूचनाओं के प्रकार या किसी सूचना का प्रकाशन,
(घ) रिकॉर्ड के प्रबंधन, रख-रखाव एवं विनिष्टीकरण की रीतियों में किसी प्रकार का आवश्यक परिवर्तन,
(च) आवेदक द्वारा चाही गयी जानकारी के न मिजने पर या उसे क्षति होने पर लोक प्राधिकारी को इसका मुआवजा देने का आदेश करना,
(i) इस अधिकार के अंतर्गत अर्थदंड लगाना, तथा,
(ii) किसी याचिका को अस्वीकार करना।
(छ) इस अधिनियम के अनुपालन के संदर्भ में लोक प्राधिकारी से वार्षिक प्रतिवेदन प्राप्त करना,
(ज) सूचना के अधिकार के बारे में प्रशिक्षण की व्यवस्था,
6. इस अधिनियम के क्रियांवयन के संदर्भ में आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राज्य सरकार को प्रस्तुत करना है। राज्य सरकार इस प्रतिवेदन को विधानमंडल को पटल पर रखती है।
7. जब कोई लोक प्राधिकारी इस अधिनियम का पालन नहीं करता तो आयोग इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही कर सकता है। ऐसे कमद उठा सकता है जो इस अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करें।