हिंदू धर्म में जन्म के पूर्व से लेकर मृत्यु तक, व्यक्ति के योग्य नागरिक के रूप में विकास के विभिन्न चरणों को वैदिक साहित्यों में संस्कार कहा गया है। हिंदू धर्म की प्राचीनता एवं विशालता के कारण ही उसे ‘सनातन धर्म’ भी कहा जाता है। महर्षि वेदव्यास के अनुसार मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक पवित्र सोलह संस्कार संपन्न किए जाते हैं। जो 16 प्रकार के होते हैं–
1. गर्भाधान संस्कार सन्तान उत्पन्न करने हेतु पुरुष एवं स्त्री द्वारा की जाने वाली क्रिया।
2. पुंसवन संस्कार पुत्र प्राप्ति के लिए मन्त्रोच्चारण।
3. सीमन्तोन्नयन संस्कार गर्भवती स्त्री के गर्भ की रक्षा हेतु किया जाने वाला संस्कार।
4. जातकर्म संस्कार बच्चे के जन्म के पश्चात् पिता अपने शिशु को घृत या मधु चटाता था। बच्चे की दीर्घायु के लिए प्रार्थना की जाती थी।
5. नामकरण संस्कार शिशु का नाम रखा जाता है।
6. निष्क्रमण संस्कार बच्चे के घर से पहली बार निकलने के अवसर पर किया जाता था।
7. अन्नप्राशन संस्कार इसमें शिशु को छठे मास में अन्न खिलाया जाता है।
8. चूडाकर्म संस्कार शिशु का तीसरे से आठवें वर्ष के बीच कभी भी मुण्डन कराया जाता है।
9. विद्यारम्भ संस्कार पाँचवें वर्ष में बच्चों को अक्षर ज्ञान कराया जाता था।
10. कर्णवेध संस्कार रोगों से बचने हेतु तथा आभूषण धारण करने के उद्देश्य से किया जाता है।
11. उपनयन संस्कार इस संस्कार के पश्चात् बालक द्विज हो जाता था। इस संस्कार के बाद बच्चे को संन्यासी जीवन व्यतीत करना पड़ता था। बच्चा इसके बाद शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाता था।
12. वेदारंभ संस्कार वेद अध्ययन करने के लिए किया जाने वाला संस्कार।
13. केशांत संस्कार 16 वर्ष का हो जाने पर प्रथम बार कशान्तत डीमारी (बाल काटना) किया जाता था।
14. समापवर्तन संस्कार विद्याध्ययन समाप्त कर घर लौटने पर किया जाता था। यह ब्रह्मचर्य आश्रम की समाप्ति का सूचक था।
15. विवाह संस्कार वर-वधू के परिणय-सूत्र में बंधन के समय किया जाने वाला संस्कार है।
16. अन्त्येष्टि संस्कार निधन के बाद होने वाला संस्कार।