शाकंभरी नवरात्रि 2022 में 10 जनवरी (सोमवार) को है। जब पृथ्वी पर सौ वर्षों तक वर्षा नहीं हुई, तब मनुष्यों को कष्ट उठाते देख मुनियों ने मां से प्रार्थना की। तब शाकंभरी के रूप में माता ने अपने शरीर से उत्पन्न हुए शाकों के द्वारा ही संसार का भरण-पोषण किया था। ‘श्री दुर्गासप्तशती’ के एकादश अध्याय और ‘अथ मूर्तिरहस्यम’ में इस बात का उल्लेख है कि देवी की अंगभूता छह देवियां- नन्दा, रक्तदंतिका, शाकंभरी, दुर्गा, भीमा और भ्रामरी हैं। शाकंभरी देवी का पूजन पौष शुक्ल अष्टमी (10 जनवरी) से शुरू हो रहा है, जो पौष पूर्णिमा (17 जनवरी) को समाप्त होगा। इसे शाकंभरी नवरात्रि भी कहा जाता है।
‘शाकंभरी नीलवर्णा नीलोत्पलविलोचना। गम्भीरनाभिस्त्रवलीवभूषिततनूदरी॥’ मां शाकंभरी के शरीर की कांति नीले रंग की है। उनके नेत्र नीलकमल के समान हैं, नाभि नीची है तथा त्रिवली से विभूषित मां का उदर सूक्ष्म है। मां शाकंभरी कमल में निवास करने वाली हैं और हाथों में बाण, शाकसमूह तथा प्रकाशमान धनुष धारण करती हैं। मां अनंत मनोवांछित रसों से युक्त तथा क्षुधा, तृषा और मृत्यु के भय को नष्ट करने वाली हैं। फूल, पल्लव आदि तथा फलों से सम्पन्न हैं। उमा, गौरी, सती, चण्डी, कालिका और पार्वती भी वे ही हैं।
ऐसे करें पूजा: पौष मास की अष्टमी तिथि को सुबह उठकर स्नान आदि कर लें। सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। फिर माता शाकंभरी का ध्यान करें। मां की प्रतिमा या तस्वीर रखें। पवित्र गंगाजल का छिड़काव करें। मां के चारों तरफ ताजे फल और मौसमी सब्जियां रखें। संभव हो, तो माता शाकंभरीके मंदिर में जाकर सपरिवार दर्शन करें। मां को पवित्र भोजन का प्रसाद चढ़ाएं। इसके बाद मां की आरती करें। जिनका मिथुन, कन्या, तुला, मकर और कुंभ लग्न है, उन्हें मां शाकंभरी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
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