आईटी कानून को वर्ष 2000 में बनाया गया था। पर उस वक्त विवादास्पद धारा 66(A) को शामिल नहीं किया गया था। इसमें वर्ष 2008 में संशोधन कर धारा-66ए को जोड़ा गया जो फरवरी 2009 में लागू हो गया था। इसके तहत सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री पोस्ट करने वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी का अधिकार दिया गया था। इसके तहत दोषियों को तीन साल की जेल या 5 लाख रुपये का जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान था।
धारा 66A में लिखा है..
‘कोई शख्स जो कंम्प्यूटर या फिर कम्युनिकेशन डिवाइस के जरिए भेजता है’
1. कोई भी ऐसी सूचना जो आपत्तिजनक हो या फिर जिसका मकसद चरित्रहनन का हो।
2. कोई भी सूचना जो झूठी है, पर इलेक्टॉनिक डिवाइसेज के जरिए उस सूचना का इस्तेमाल किसी शख्स को परेशान करने, असुविधा पहुंचाने, खतरा पैदा करने, अपमान करने व चोट पहुंचाने के लिए किया जाए।
3. कोई भी इलेक्ट्रॉनिक मेल या इलेक्ट्रॉनिक मैसेज, जिसके जरिए किसी को व्यर्थ परेशान करने या उसके लिए समस्याएं बढ़ाने के लिए किया जाए. तो ऐसा करने वाले शख्स को जेल भेजा जाएगा। दोषी को दो-तीन साल की सजा हो सकती है साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा करते हुए पाया जाता है तो पुलिस उसे 66A के तहत गिरफ्तार कर उसे कोर्ट में पेश कर सकती है। इसके साथ ही उस पर संबंधित मामले में उपयुक्त अन्य धाराएं जोड़ कर भी मुकदमा चला सकती है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 25 मार्च 2015 को सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66A को निरस्त कर दिया है। ऐतिहासिक फैसले सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादास्पद प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया।