संस्कृत के प्रसिद्ध मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ

संस्कृत के मुहावरे एवं संस्कृत लोकोक्तियाँ सभी प्रतियोगी छात्रों एवं छात्राओं की आवश्यकता को पूरी करने के लिए हम यहां दे रहे है। आईएएस, पीसीएस, विभिन्न राज्यों की होने वाली परीक्षाओं के साथ ही अनेक प्रवेश परीक्षाओं में भी संस्कृत के मुहावरे एवं संस्कृत लोकोक्तियाँ पर आधारित प्रश्न पूछे जाते है। जिसके लिए इनका अध्ययन करके आप सफलता पा सकते है।


संस्कृत की महत्वपूर्ण कहावतें
अतृणे पतितो वह्रि: स्वयमेवोय शाम्यति।
तिनकों-रहित स्थान में पड़ी हुई अग्नि स्वयं शमित (शान्त) हो जाती है।
आहारे व्यवहारो च त्यक्तल्ज्ज: सुखी भवेत्।
आहार, व्यवहार में लल्जा छोड़ने से ही सुख मिलता है।
आर्जवं हि कुटिलेषु न नीति:।
कुटिल मनुष्यों के साथ सरलता का व्यवहार नीति-युक्त नहीं है।
अति सर्वत्र वर्जयेत्।
अति सर्वत्र वर्जित है।
अवश्यमेवं भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।
अच्छे अथवा बुरे जैसे कर्म किये हैं उनका फल भोगना ही पड़ेगा।
आत्मवत् सर्व भूतानि।
सभी प्राणियों को अपने समान समझना चाहिए।
उपदेशों ही मूर्खाणां प्रकोपायं न शान्तये।
मूख को उपदेश देने से उसका क्रोध शान्त नहीं होता।
उद्योगिनं पुरुष सिंह मुपैति लक्ष्मी।
उद्यमी पुरुष सिंह लक्ष्मी की प्राप्ति करते हैं।
उदर निमिंत्त बहु कृत वेषा।
पेट भरने के लिए अनेक प्रकार के रूप बनाने पड़ते हैं।
एक: स्वाद व भुत्र्जीथा:।
किसी वस्तु को एकाकी नहीं खाना चाहिए। किसी वस्तु को अकेले खाने में आनन्द नहीं आता।
कृशेकस्यास्ति सौह्रदम्?
गरीब का कौन मित्र?
किं जीवितेन् पुरुषस्य निरक्षरेण।
मनुष्य के निरक्षर-जीवन से क्या लाभ।
कालस्य कुटिल: गति:।
काल की गति वक्र होती है। काल की दशा नहीं जानी जाती।
गुणेर्विहीना बहुजल्पयन्ति।
गुणहीन व्यक्ति बकवास अधिक करते हैं।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गाद्पिगरीयसी।
जननी और जन्म-भूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ होती है।
दैवो दुर्बल घातक:।
देव भी निर्बल को दु:ख देता है।
न बन्धु मध्ये धनहीन जीवनम्।
बन्धओं के मध्ये गरीब होकर रहना उचित नहीं है।
न मूर्ख जन संसगति सुरेन्द्रभवनेश्वपि।
मूर्खों के साथ स्वर्ग में रहना भी अच्छा नहीं है।
नहिं सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।
सोये हुए सिहं के मुख में अपने आप हिरन नहीं चले जाते।
निरस्त पादपे देशे एरण्डोपि द्रुमायते।
निवृक्ष प्रदेश में एरण्ड भी पेड़ कहलाने लगता है।
नैकत्र सर्वे गुणसन्निपाता:।
एक स्थान पर सब गुण नही मिलते।
पय: पांन भुजनंगानां केवलं विषवद्र्धनम्।
सर्प को दूध पिलाना उसके विष को बढ़ाना है।
परोपकाराय सतां विभूतय:।
परोपकार सज्जनों की सम्पत्ति होती है।
परोपदेश वेलायां शिष्टा: सर्वे भवन्ति वै।
परोपदेश करते समय सभी लोग सज्जन और शिष्ट बन जाते हैंं।

प्रासाद शिखर स्थोपि काक: किं गुरुड़ायते।
महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो पाता।
बुद्धिर्यस्य बलम् तस्य, निर्बुद्धिस्य कुतो बल:।
जिसके पास बुद्धि है, वही बलवान है, निर्बुद्धि व्यक्ति को कहाँ बल होता है।
बुद्धे: फलमानग्रह:।
हठ न करना ही बुद्धिमानी है।
मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दु:खं न च सुखम।
कर्मशील मनस्वी व्यक्ति सुख-दुख की परवाह नहीं करता।
मितं च सार च वचो हि वाग्मिता।
संक्षिप्त, सार-रूप में कथन करना ही कला है।
मुण्डे मुण्डे रुचिर्हिभित्रा।
भिन्न-भिन्न मनुष्य की प्रवृत्ति भिन्न होती है।
महाजनो येन गत: स पन्था:।
महपुरुष जिस पथ से जाते हैं, वही मार्ग अनुकरणीय है।
मौनं स्वीकृति लक्षणम्।
मौन होना स्वीकृति का लक्षण है।
मौनं स्वार्थ साधनं।
चुप रहने से सब काम हो जाते हैं।
यत्ने कृते यदि नसिध्यति कोत्र दोष:?
यत्न करने पर सफलता न मिले तो किसका दोष?
यादृशी शीतला देवी तादृशी वाहन खर:।
जैसे को तैसा मिलना।
विद्या ददाति विनयम्।
विद्या से विनय आती है।
वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि।
सज्जन व्यक्ति वज्र से कठोर और फूलों से भी कोमल होते हैं।
विनाश काले विपरीत बुद्धि:।
विनाशकाल में बुद्धि नष्ट हो जाती है।
विद्या धनम् सर्व धन प्रधानं।
विद्या-धन सर्वश्रेष्ठ होता है।
विद्या-विहीन: पशु:।
विद्या से रहित व्यक्ति पशु-तुल्य है।
वुभूक्षित: किं न करोति पांप।
भूखा व्यक्ति कौन सा पाप नहीं कर सकता।
क्षीणा नरा: निष्करुणा भवन्ति।
कमजोर व्यक्ति दयारहित होते हैं।
शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्
शरीर की रक्षा करना प्रधान धर्म है।
शठे शाठ्यं समाचरेत्।
दुष्ट के साथ दुष्टातापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
शुभस्य शीघ्रम।
शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए।
सत्यमेव जयते नानृतम्।
सत्य की सदा जय होती है, असत्य की नहीं।
सन्तोषं परमं सुखं।
सन्तोष सबसे बड़ा सुख है।
सर्वे गुणां: कांचनमाश्रयन्ते।
धन में सब गुण निवास करते हैं।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्।
सत्य बोला, प्रिय बोलो।
हितं मनोहारि च दुर्लभं वच:।
हितकर प्रियवचन दुर्लभ हैं।

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Web Title : Sanskrit Idioms And Phrases In Hindi