Explanation : संगीत रत्नाकर में कुल 264 रागों का वर्णन है। संगीत रत्नाकर ग्रंथ के सात अध्यायों में दूसरा अध्याय रागविवेकाध्याय हैं। इसमें 'मार्ग' राग-ग्राम राग, उपराग, राग, भाषा, विभाषा, अंतर्भाषा तथा 'देशी' राग-भाषांग, उपांग, क्रियांग और रागांग के रूप में रागों का दशविध वर्गीकरण दिया गया है। संगीत रत्नाकर में प्रत्येक वर्ग के आधार पर रागों की कुल संख्या 264 है। इस अध्याय में दो प्रकरण हैं। प्रथम प्रकरण के अंतर्गत पाँच गीतियों - शुद्धा, भिन्ना, गौड़ी, वेसरा व साधारणी के आधार पर पाँच प्रकार के ग्राम राग बताये हैं। तत्पश्चात् उपराग, राग, भाषा, विभाषा एवं अंतर्भाषा का उल्लेख है। द्वितीय प्रकरण में रागालाप एवं आक्षिप्तिका के साथ-साथ पूर्वप्रसिद्ध व अधुनाप्रसिद्ध (उस काल में प्रचलित) देशी रागों का वर्णन है। बता दे कि शारंगदेव कृत 'संगीत रत्नाकर' ग्रंथ के सात अध्याय हैं–जिसमें स्वरगताध्याय, रागविवेकाध्याय, प्रकीर्णकाध्याय, प्रबंधाध्याय, तालाध्याय, वाद्याध्याय तथा नर्तनाध्याय। इसमें शुरू के छ: अध्याय संगीत और वाद्ययंत्रों के बारे में और अंतिम सातवाँ अध्याय नृत्य के बारे में है।....अगला सवाल पढ़े
Explanation : सितार का आविष्कार अमीर खुसरो ने किया था। सितार के आविष्कार के संबंध में विद्वानों की अनेक धारणाऐं विद्यमान हैं। कुछ विद्वानों के मतानुसार सितार ईरानी अथवा पर्शियन वाद्य है जो मुसलमानों के आगमन के साथ भारत में आया। कुछ विद्वानों क ...Read More
Explanation : सितार में सात तार होते हैं। पहले तार को बाज का तार कहा जाता है। दूसरा तार जोड़े का होता है। अंतिम दो तारों को चिकारी कहते हैं। इस पर झाला वादन होता है। सितार के तार क्रमश: मंद्र म, मंद्र सा, मंद्र प (मंद्र सा) मद्र प (अतिमंद्र सा ...Read More
Explanation : तबले में 16 घर होते हैं। तबला पूर्णतया फारसी वाद्य है व फारस के तबल नामक वाद्य का ही भारतीय रूपांतर है। डॉ. लाल मणि मिश्र 'तबला' शब्द की व्युत्पत्ति फारस के तबल से मानते हैं जिसका अर्थ है वह वाद्य जिसका मुख ऊपर की ओर हो तथा जिसका ...Read More
Explanation : तबला बजाने वाले को तबला वादक (Tabla maestro) कहते हैं। तबला वादकों में बुगरा खां, लाल जी श्रीवास्तव, गिरीश चंद्र श्रीवास्तव, सन्तराम, निखिल घोष, शमसुद्दीन खा, मिया बक्श, मोदू खा, मुनीर खां, अहमद जान थिरकुवा, जाकिर हुसैन इत्यादि क ...Read More
Explanation : तबला अवनद्ध वाद्य यंत्र है। इस तरह के वाद्य यंत्र में ढोल, नगाडा, चंग ढफ आदि आते है। वाद्य यंत्रों को मुख्यतः चार श्रेणियों में बांटा गया हैं–तत् वाद्य यंत्र, सुषिर वाद्य यंत्र, अवनद्ध वाद्य यंत्र और घन वाद्य यंत्र। तबला भारतीय स ...Read More
Explanation : राग भैरवी प्रात:काल में गाया जाता है। यह भैरव की ही भाँति प्रातः कालिक ख्यातिलब्ध राग है पर इस राग को गाकर महफिल समाप्त करने की परंपरा प्रचार में है। संगीतशास्त्र में रागों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। राग के लिए कम से कम 5 स ...Read More
Explanation : तानपुरा का आविष्कार तुम्बरू नामक गंधर्व ने किया था। इसी कारण इसका नाम तंबूरा पड़ा। तंबूरा देवताओं के राजा इंद्र की सभा में एक बड़े गायक थे। तानपुरा की जाति के अन्य वाद्य दंड वीणा, एक तारा, दो तारा, महाराष्ट्र के तुण-तुण आदि मिलते ...Read More
Explanation : तानपुरा में चार तार होते हैं। जो लोहे और पीतल के बने होते हैं। पुरुषों के तानपुरे में चारों तार कुछ मोटे तथा स्त्रियों के तानपुरे में कुछ पतले होते हैं। प्रत्येक तार के नीचे मनका तथा सूत (डोरा) अटका रहता है। अच्छे तारों की ध्वनि ...Read More
Explanation : पंडित जसराज की मृत्यु 17 अगस्त 2020 को अमेरिका के न्यू जर्सी में हुई। वह भारत ही नहीं दुनिया के सर्वाधिक प्रतिष्ठित शास्त्रीय गायकों में से एक थे। उनका जन्म 28 जनवरी, 1930 को हरियाणा के फतेहाबाद जिले के पीली मंदोरी में हुआ था। वह ...Read More
Explanation : पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी, 1930 को हिसार में हुआ। यह भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायकों में से एक थे। इनके पिता पं. मोतीराम तत्कालीन कश्मीरी राज्य के दरबारी गायक थे। इन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पिता पं. मोतीराम व अग्रज पं. मठ ...Read More
Web Title : Sangeet Ratnakar Mein Kul Kitne Raago Ka Varnan Hai