Explanation : संगीत रत्नाकर में तालों का वर्णन पाचवाँ अध्याय 'तालाध्याय' में हैं। 'तालाध्याय' अध्याय में मार्ग, ताल, कला (निःशब्द क्रियाऐं) और पात (सशब्द क्रियाऐं), ध्रुव आदि चार मार्ग मथा ध्रुवका, पतिता आदि आठ प्रकार की मार्गकलाऐं गुरु, लघु आदि नाप, एकलत्व आदि भेद, (पाद, भाग, मात्रा) ताल में पात और कला की विधि, अंगुलियों के प्रयोग के नियम, युग्म चतुस्त्र आदि भेद, परिवर्तन तथा लय, लयों की यतियों, गीतक, छंदक आदि (अन्य सात प्रकार) गीत, तालांगों का समूह और गीतांग, देशीताल, तालों के प्रत्यय आदि को दर्शाया गया है।
संगीत रत्नाकर ग्रंथ के प्रथम छः अध्याय - स्वरगताध्याय, रागविवेकाध्याय, प्रकीर्णकाध्याय, प्रबंधाध्याय, तालाध्याय तथा वाद्याध्याय संगीत और वाद्ययंत्रों के बारे में हैं। इसका अंतिम सातवाँ अध्याय 'नर्तनाध्याय' है जो नृत्य के बारे में है। इस तरह इस ग्रंथ में गायन-वादन एवं नृत्य, तीनों ही विषय पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इसके द्वारा नाद, श्रुति, स्वर, ग्राम, मूर्च्छना, लय, ताल इत्यादि समस्त बातों को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। यह ग्रंथ प्राचीन एवं आधुनिक, दोनों को जोड़ने वाली एक कड़ी है।
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