रौलट एक्ट (Rowlatt Act) को काला कानून इसलिए कहा गया है क्योंकि इस कानून के द्वारा कार्यपालिका को षड्यत्रों तथा अपराधों को दबाने के लिए इतनी अधिक शक्तियां दी गई कि नौकरशाही किसी भी आंदोलन को कुचल सकती थी और आवश्यकता पड़ने पर जनसाधारण में आंतक उत्पंन कर सकती थी। रौलट एक्ट के द्वारा अंग्रेजी सरकार जिसको चाहे, जब तक बिना मुकद्दमा चलाए जेल में अनिश्चित काल तक बंद रख सकती थी। यह कानून जनता की सामान्य स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष कुठाराघात था। इसीलिए भारतीय जनता ने इसको ‘काला कानून’ कह कर कटु आलोचना की। इस कानून को ‘न दलील, न अपील, न वकील’ भी कहा जाता है। इसमें पुलिस को तलाशी, गिरफ्तारी और जमानत न देने के असीमित अधिकार दिये गये।
रौलट एक्ट कानून को भारतीयों के विरोध के बावजूद पारित किया गया। फलत: मोहम्मद अली जिन्ना, मदनमोहन मालवीय आदि ने केंद्रीय विधान परिषद से त्यागपत्र दे दिया। महात्मा गांधी की चेतावनी के बावजूद भी यह 18 मार्च, 1919 को कानून बन गया। गांधी जी ने रॉलेट एक्ट का देशव्यापी विरोध करने का आह्वान किया। अतः यह गांधी जी का ‘पहला देशव्यापी आंदोलन’ था। बंबई में एक ‘सत्याग्रह सभा’ का गठन किया जिसके गांधी जी अध्यक्ष थे। महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल, 1919 (पहले यह तारीख 30 मार्च, 1919 निर्धारित की थी।) को अखिल भारतीय हड़ताल का आह्वान किया, जो सत्याग्रह आंदोलन की शुरूआत होगी। पूरे देश में सत्याग्रह शुरू हो गया।
दिल्ली में स्वामी श्रद्धानंद के जुलूस पर पुलिस ने गोलिया चलाईं। 6 अप्रैल को सारे देश में शांति पूर्ण हड़ताल हुई। सरकार ने दमनचक्र प्रारंभ करते हुए गांधीजी का पंजाब और दिल्ली में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया और उन्हें 8 अप्रैल, 1919 को पलवल (हरियाणा) से बंदी बना लिया और वापस बंबई पहुंचा दिया। महात्मा गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि-“ब्रिटिश साम्राज्य आज शैतानियत का प्रतीक है।”