भारत के कानूनी मामलों में अदालतें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत कार्यवाही करती है, लेकिन 31 अक्टूबर 2019 से पहले तक जम्मू-कश्मीर में आईपीसी की जगह रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) का इस्तेमाल किया जाता था। आपको बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के साथ ही 1 नवबंर 2019 से जम्मू कश्मीर के सभी थानों में अब भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) के तहत आपराधिक मामले दर्ज किए जाएंगे। इससे पहले तक रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) के तहत केस दर्ज किए जाते थे। जम्मू कश्मीर देश का अकेला ऐसा राज्य था जो कानूनी कार्रवाई में आरपीसी का प्रयोग करता था। 31 अक्टूबर से जम्मू कश्मीर का दो केंद्र शासित राज्यों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में पुनर्गठन होने के साथ ही रणबीर दंड संहिता इतिहास बन गयी। इसका स्थान भारतीय दंड संहिता ने ले लिया है।
दरअसल, आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी। वहां डोगरा राजवंश का शासन था, महाराजा के नाम पर रणबीर दंड संहिता लागू की गई थी। यह संहिता थॉमस बैबिंटन मैकॉले की आईपीसी के ही समान है, पर कुछ मामलों में अलग है। आईपीसी की धारा 4 कंप्यूटर के माध्यम से किए गए अपराधों को व्याख्यायित और संबोधित करती है, लेकिन आरपीसी में इसका कोई उल्लेख नहीं था। आईपीसी की धारा 153CAA के तहत सार्वजनिक सभाओं के दौरान जान बूझकर शस्त्र लाने को दंडनीय अपराध माना जाता है, जबकि आरपीसी में इस महत्वपूर्ण विषय का उल्लेख नहीं था। आईपीसी की धारा 195A के तहत अगर कोई किसी की झूठी गवाही या बयान देने के लिए प्रताड़ित करता है, तो वह सजा का हकदार माना जाता है, जबकि आपीसी में इस संबंध में कोई निर्देश नहीं था। आईपीसी की धारा 304B, दहेज के कारण होने वाली मौतों से संबंधित है, लेकिन आरपीसी में इसका कोई उल्लेख नहीं था। रणबीर दंड संहिता की धारा 190 के तहत सरकार ऐसे किसी भी व्यक्ति को सज़ा दे सकती है, जो सरकार द्वारा अमान्य या जब्त की गई सामग्री का प्रकाशन या वितरण करता है। इस मामले में अपराध का निर्धारण करने का अधिकार मुख्यमंत्री को था। यह विशेष धारा पत्रकारिता, सोच, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बुरी तरह से प्रभावित करती थी।
इसके अलावा रणबीर दंड संहिता की धारा 167A के मुताबिक जो भी सरकारी कर्मचारी नाकरदा काम के लिए किसी ठेकेदार का भुगतान स्वीकार करते हैं, वह कानूनी तौर पर सज़ा के हक़दार थे। रिश्वतखोरी से जुड़ी यह महत्वपूर्ण धारा आईपीसी में मौजूद नहीं है। रणबीर दंड संहिता की धारा 420A के तहत सरकार, सक्षम अधिकारी या प्राधिकरण किसी भी समझौते में होने वाले छल या धोखाधड़ी की सज़ा का निर्धारण करते थे। ऐसा स्पष्ट व्याकरण आईपीसी में नहीं है। रणबीर दंड संहिता की धारा 204A सबूत मिटाने या बिगाड़ने की सज़ा का साफ निर्धारण करती थी, इस विषय पर ऐसा स्पष्टीकरण आईपीसी में नहीं है। रणबीर दंड संहिता की धारा 21 सार्वजनिक नौकरी का दायरा व्याख्यित करती थी जबकि भारतीय दंड संहिता में इसका दायरा सीमित है।