‘राजसूय’ से संबंधित अनुष्ठानों का वर्णन है?

(A) ऋग्वेद में
(B) यजुर्वेद में
(C) सामवेद में
(D) अथर्ववेद में

Question Asked : [UPPCS (Pre) Opt. History 2006]

Answer : यजुर्वेद में

'यजुष' का शाब्दिक अर्थ है - यज्ञ, पूजा, श्राद्ध, आदर आदि। इस वेद के मंत्रों का पाठ यज्ञ में अध्वर्यु नामक पुरोहित वर्ग करता है। इसकी वाजसनेयी संहिता में 40 अध्याय है। प्रारंभ के 25 अध्याय विषय वस्तु की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रथम और द्वितीय अध्याय में दैनिक 'अग्निहोत्र' तथा 'चातुर्मास्य' यज्ञ के मंत्रों का संग्रह है। चतुर्थ से अष्टम अध्याय पर्यंत 'अग्निष्टोमादि' सोमयज्ञों एवं पशुबलि से संबंधित मंत्र प्राप्त होते हैं। कतिपय एक दिन में समाप्त होने वाले यज्ञ भी सामयज्ञों की परंपरा में प्राप्त है। इनमें वाजपेय यज्ञ सर्वप्रधान है। सोमयज्ञों की ही परंपरा में राजाओं द्वारा सम्पाद्य राजसूय यज्ञ भी है। वाजपेय एवं राजसूय यज्ञों की प्रार्थनाएं वाजसनेयी संहिता के नवम तथा दशम अध्याय में की गई है। ध्यातव्य है कि ऋग्वैदिक धर्म में देवताओें की कृपा या उनसे वरदान प्राप्त करने के लिए यज्ञ करके देवताओं की पूजा की जाती थी। यज्ञों में दी जाने वाली बलि दूध, अत्र, घी, मांस तथा सोम की होती थी। ऋग्वेद में केवल सोम यज्ञ का ही विशद उल्लेख है।
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Web Title : Rajasuya Se Sambandhit Anushthano Ka Varnan Hai