Explanation : राग भैरवी प्रात:काल में गाया जाता है। यह भैरव की ही भाँति प्रातः कालिक ख्यातिलब्ध राग है पर इस राग को गाकर महफिल समाप्त करने की परंपरा प्रचार में है। संगीतशास्त्र में रागों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। राग के लिए कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। स्वरों की संख्या के आधार पर राग को मुख्यतः तीन वर्गों में विभाजित किया गया है–
1. औड़ब राग – इस राग में 5 स्वर प्रयुक्त होते हैं. भूपाली, मालकोश आदि इसी श्रेणी के राग हैं।
2. पाडव राग – इस राग में 6 स्वर प्रयुक्त होते हैं, मारवा, पूरिया आदि इस श्रेणी में आते है।
3. संपूर्ण राग – इस राग में सातों स्वरों का प्रयोग होता है, यमन, विलावल, भैरव, भैरवी आदि इसी श्रेणी के रागों में आते हैं।
राग भैरवी का परिचय
''''रे ग ध नि कोमल राखत, मानत मध्यम वादी।
प्रात: समय जाति संपूर्ण, सोहत सा संवादी॥''''
कोमल स्वर - रिषभ, गंधार, धैवत और निषाद।
शुद्ध स्वर - षडज, मध्यमा, पंचम।
जाति - सम्पूर्ण-सम्पूर्ण
थाट - भैरवी
वादी - मध्यमा
संवादी - षडज
आरोह- सा रे॒ ग॒ म प ध॒ नि॒ सां।
अवरोह- सां नि॒ ध॒ प म ग॒ रे॒ सा।
पकड़- म, ग॒ रे॒ ग॒, सा रे॒ सा, ध़॒ नि़॒ सा।
....अगला सवाल पढ़े