पुलित्जर पुरस्कार न्ययॉर्क के प्रकाशक जोसेफ पुलित्जर की स्मृति में वर्ष 1917 से अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय द्वारा पत्रकारिता एवं कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रदान किया जाता है। पुलित्जर मूलत: हंगरी के थे और युवावस्था में ही अमेरिका चले गए थे। ये पुरस्कार आत्मकथा, कविता, फिक्शन, नाटक, इतिहास, जनसेवा एवं पत्रिकारिता की अन्य विभिन्न श्रेणियों के लिए दिया जाता है। इसमें जनसेवा को छोड़कर प्रत्येक पुरस्कार के तहत 10,000 डॉलर की राशि प्रदान की जाती है। जनसेवा के तहत स्वर्ण पदक दिए जाने का भी प्रावधान है।
अमेरिकी जोसेफ पुलित्जर ने अपनी वसीयत में न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय को पत्रकारिता स्कूल शुरू करने और पुरस्कार स्थापित करने के लिए पैसे दिए, जिन्होंने अखबार प्रकाशक के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। इसमें पुरस्कार व छात्रवृत्ति के लिए 2,50,000 डॉलर आवंटित किए। पहला पुलित्जर पुरस्कार 4 जून, 1917 को प्रदान किया गया। अब यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष अप्रैल में घोषित किए जाते हैं। पुरस्कार शुरू होने के एक वर्ष बाद 1918 में पुलित्जर पदक का डिजाइन मूर्तिकार डैनियल चेस्टर फ्रेंच और उनके सहयोगी हेनरी ऑगस्टस ल्यूकमैन द्वारा तैयार किया गया। पुलित्जर पुरस्कार संयुक्त राज्य अमेरिका में समाचार पत्र, पत्रिका और ऑनलाइन पत्रकारिता, साहित्य और संगीत रचना में उपलब्धियों के लिए दिया जाता है। कुल 21 श्रेणियों में ये पुरस्कार दिए जाते हैं। प्रत्येक विजेता को एक प्रमाण-पत्र व 10,000 डॉलर की नकद राशि दी जाती है। 21वीं श्रेणी के विषय ‘लोक सेवा से संबंधित पत्रकारिता’ के लिए स्वर्ण पदक किया जाता है। साथ ही स्कूल ऑफ जर्नलिज्म की सिफारिश पर प्रत्येक वर्ष 7,500 डॉलर की पांच पुलित्जर फैलोशिप भी प्रदान की जाती हैं।
अभी तक चार भारतीयों को यह पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष 1909 में रिपोटिंग के लिए गोविन्द बिहारी लाल, वर्ष 2000 में फिक्शन के लिए-‘इण्टररिंटर आॅफ मेलेडीज’ झुप्पा लाहिड़ी को, वर्ष 2003 में एक्सप्लेनेटरी रिपोटिंग के लिए गीता आनन्द को, वर्ष 2011 में नॉन फिक्शन के लिए-‘ए ऐम्परर आॅफ आॅल मेलेडीज व —’ए बायोग्राफी आॅफ कैंसर’ सिद्धार्थ मुखर्जी को और वर्ष 2014 को कविता के लिए-‘3’ सेक्शन भारतीय मूल के अमेरिकी विजय शेषाद्रि को यह पुरस्कार मिल चुका है।