Explanation : पश्चिमी हिंदी की प्रमुख बोलियां खड़ी बोली और ब्रजभाषा हैं। खड़ी बोली' शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है प्रथम साहित्यिक हिंदी के रूप में और दूसरा दिल्ली, मेरठ क्षेत्र की लोक बोली के अर्थ में। यहाँ खड़ी बोली का आशय दूसरे अर्थ से ही है। अतएव बोली के रूप में इसे कौरवी कहना अधिक समीचीन होगा। कुरु जनपद की बोली होने के कारण राहुल सांस्कृत्यान ने इसे यह नाम दिया था। खड़ी बोली में खड़ी शब्द के कई अर्थ हैं। यथा-खरी अर्थात् शुद्ध, खड़ी यानि मानक या परिनिष्ठित। एक अन्य मतानुसार खड़ी बोली में खड़ी पाई का प्रयोग अधिकता से होता है, तो कुछ लोगों ने इसे बोली के ध्वन्यात्मक कर्कशता से जोड़ा है। खड़ी बोली का प्रभाव विस्तार अंबाला, पटियाला, देहरादून, मेरठ, मुजफ्फरनगर, रामपुर, मुरादाबाद बिजनौर सहारनपुर तथा दिल्ली तक फैला है।
ब्रजभाषा बोली का प्रभाव क्षेत्र भरतपुर, धौलपुर, मथुरा, अलीगढ़, आगरा, एटा, मैनपुरी, बुलंदशहर, ग्वालियर तथा बदायूँ, बरेली, नैनीताल, की तराई में फैला है। ब्रजभाषा के प्रचुर साहित्य में सूरदास, बिहारी, भूषण, मतिराम, चिंतामणि, पद्माकर, भारतेंदु तथा जगन्नाथदास रत्नाकर के नाम प्रमुख हैं।
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