Explanation : नाट्य शास्त्र में 36 अध्याय है। नाट्यशास्त्र भारतीय साहित्य और संगीत का अथाह भंडार है। इसमें रस, छंद, वेशभूषा, रंगमंच, अभिनय, संगीत तथा नृत्य में से कोई ऐसा विषय नहीं मिलता, जिसकी विस्तृत जानकारी दी गई हो। भरतमुनि (200 ई.पू.) का ग्रंथ 'नाट्यशास्त्र' काव्यशास्त्र का प्रथम ग्रंथ माना जाता है। नाट्यशास्त्र के अन्तर्गत आठ (8) रसों की स्थिति इस प्रकार से बतायी हैं– शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स और अद्भुत। भरत के नाट्यशास्त्र में तर्ज और अलंकारों का भी वर्णन किया गया है, नाट्यशास्त्र के अनुसार अलंकारों के लक्षण हैं– 1. प्रसन्नानि, 2. प्रसन्नान्त, 3, प्रसन्नधन्त, 4, प्रसन्नामध्य, 5. सम, 6. विन्दु, 7. निवृत, 8. प्रवृत, 9. वेणु, 10. कम्पित, 11. रेचित, 12. प्ररतोलित, 13. तारमन्द्रप्रसन्न, 14. मन्द्रतार प्रसन्न और 15. प्रस्तार।
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