प्राचीन चम्पू-काव्य 'नलचम्पू है इसके लेखक त्रिविक्रम भट्ट हैं इनका एक अन्य चम्पू काव्य 'मदालसाचम्पू' हैं। किन्तु इनके अतिरिक्त भी उनकी रचना कही जाती हैं — इन्द्रराजप्रशस्ति'। यह कोई ग्रंथ नहीं है प्रत्युत अपने आश्रयदाता वेंकटाधीश इंद्रराज तृतीय के राज्याभिषेक तथा उसके बाद उनके किए हुए दान आदि की प्रशस्तियां हैं, जो ताम्रपत्रों के रूप में प्राप्त हुई हैं।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
चम्पू परंपरा का प्रारंभ हमें अथर्ववेद में प्राप्त होता है इसमें गद्य और पद्य का मिश्रित रूप से प्रयोग मिलता है।
त्रिविकम का समय दसवीं शती का पूर्वार्ध निश्चित रूप से सिद्ध होता है।
त्रिविकम भट्ट का दूसरा नाम 'यमुनात्रिविक्रम' था।
नलचम्पू का प्रतिपाद्य रस विप्रलम्भ श्रृंगार है।
नलचम्पू के प्रत्येक उच्छ्वास के अंतिम लोक में 'हरचरणसरोज' शब्द हैं।
नलचम्पू की कथा अपूर्ण है और इसमें केवल सात उच्छवास हैं।
नलचम्पू का दूसरा नाम दमयन्ती कथा है।
जैन कवि सोमदेवसूरि ने 959 ई. में यशस्तिलक चम्पू की रचना की थी। ये नेमदेव के शिष्य थे। रामायण चम्पू के लेखक राजाभोज (1005 से 1054 ई.) माने जाते हैं। ....अगला सवाल पढ़े
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