'मेघदूतम्' महाकवि कालिदास द्वारा प्रणीत एक सुमधुर संस्कृत गीतिकाव्य है। गीतिकाव्य का वह रूप होता है, जोवाद्यों के साथ संगीतात्मक रूप में गाया जाता है। गीतिकाव्य प्रेम, शोक या भक्ति के भावों, विचारों या अनुभवों का प्रकाशन है। गीतिकाव्य को खंडकाव्य कहा जाता है। गीतिकाव्यों, विशेषकर दूतकाव्यों में कालिदास का 'मेघदूतम्' सर्वश्रेष्ठ है। इसको मेघ संदेश भी कहते हैं। मेघदूतम् की कथा वस्तु दो उपखंडों में विभक्त हैं — पूर्वमेघ और उत्तरमेघ। पूर्वमेघ में 67 तथा उत्तरमेघ में 54 श्लोक प्राप्त होते हैं। इस प्रकार मेघदूतम् 'मंदाक्रान्ता छंद' में लिखा हुआ 121 श्लोकों का एक लघुत्रयी काव्य है। यह गीतिकाव्य का उज्जवल माणिक्य है। इसकी शिक्षागर्भित मनमोहिनी कविता पर मोहित होकर आर्यासप्तशतीकार गोवर्धनाचार्य ने अपने उद्गार इस प्रकार प्रकट किए —
साकूतमधरुकोमलविलासिनी कण्ठकूजितप्राये।
शिक्षासमयेSपि मुदे रतिलीला कालिदासोक्ति:।।
अर्थात् शिक्षा समय में आनंद देने वाली दो ही वस्तुए हैं — एक भाव गर्भित, मधुर और कोमल कण्ठकूजित वाली विलासिनी कविता की रति लीला और दूसरी उसी के समान भावपूरत मधुर और कोमलान्त पदावली वाली कालिदास की कविता। अपने गुणों के कारण ही मेघदूत बहूत ही लोकप्रिय बना। इससे प्रभावित होकर एक विदेशी विद्वान मोनफ्रेंच ने यह प्रकट किए 'यूरोप में ही क्या विश्व भर के साहित्य में ऐसी कृति खोजन पर भी दूसरी नहीं मिलेगी।' इससे मेघदूत का महत्व या गीतिकाव्य में सथान स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है। गीतिकाव्य का उद्गम स्थल ऋग्वेद हैं। गीतिकाव्य के मुख्यत: तीन प्रकार बताये गये हैं —
1. स्तोत्र, 2. नीति एवं 3. श्रृडारिका मेघदूतम श्रृडज्ञरिक तथा श्रृडारिक में प्रबंध श्रृडारिक है। कालिदास को गीतिकाव्प्य का जन्मदाता कहा जाये तो अनुपयुक्त न होगा, क्योंकि गीतिकाव्य में प्राचीनतम रचनाएं ऋतुसंहार औरर मेघदूतम् कालिदास की ही हैं।
अन्य प्रमुख गीत काव्य हैं — हाल की गाथासप्तशती, बाण की चण्डीशतक, मयूर की सूर्यशतक, आनन्दवर्धन ने देवीशतक, दामोदर गुप्ता की कुट्टिनीमत, गोकुल नाथ की शिवशतक, गोवर्धन की आर्याशप्तशती और पंडित जगन्नाथ की गंगा लहरी आदि।
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