आश्विन मास की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा, कोजागरी और कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इस दिन चंद्र देव सोलह कला संपूर्ण हो जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन श्री लक्ष्मी के साथ श्री नारायण की पूजा करने से अच्छा स्वास्थ्य, सुख-शांति व समृद्धि मिलती है। पुराणों के अनुसार, देवी लक्ष्मी का जन्म इसी दिन हुआ था। श्रीकृष्ण ने भी इसी दिन गोपियों के साथ वृंदावन के निधिवन में महारास किया था। गोपिकाएं कृष्ण की मधुर मुरली से मोहित हो कर घर-बार छोड़ वन में आ गई थीं। इसे देख कृष्ण ने रास और रात की अवधि बढ़ा दी।
शरद पूर्णिमा के दिन, भोर में उठकर स्नान के बाद अपने आराध्य की आराधना, ध्यान-उपासना करनी चाहिए। इस दिन चंद्र देव, श्रीहरि और महालक्ष्मी आदि देवताओं की उपासना करनी चाहिए। कहते हैं, इससे हर मनोकामना पूरी होती है, व्यक्ति के कष्ट दूर होते हैं और संतान दीर्घायु होती है। उपासक को धन, यश, संपत्ति की प्राप्ति होती है। सायंकाल में लक्ष्मी पूजन के बाद रात्रि जागरण की परंपरा है। इसी कारण से इसे कोजागर व्रत कहते हैं। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं।
अध्यात्मिक अर्थ में ‘शरद’ शब्द शीतलता और सत्य का प्रतीक है। इसे ‘शरत’ भी कहते हैं, जिसका भवार्थ सत्य में रत या मगन रहना है। इस अर्थ में, शरद पूर्णिमा शीत काल और सत्य काल के आरम्भ का सूचक है। सृष्टि चक्र में सत्य काल, सत्ययुग को कहा गया है। इस आदि युग में श्री लक्ष्मी व नारायण का वास व राज है।
अज्ञानता व अधर्म का विनाश करने तथा सत्य ज्ञान, दैवी गुण और सनातन देवी-देवता धर्म की पुन: स्थापना के लिए परमात्मा अवतरित होते हैं। कहा गया है- ‘ज्ञान सूर्य प्रगटा अज्ञान अंधेर विनाश।’ कलियुगी रात्रि के अंत एवं सतयुगी प्रभात से कुछ पहले ब्रह्म मुहूर्त में ज्ञान-सूर्य, निराकार परमात्मा का प्रजापिता ब्रह्मा का साकार रूप में दिव्य अवतरण होता है। इसे संगम युग या अमृत वेला कहते हैं।
इसलिए शरद पूर्णिमा को परमात्मा रूपी कृष्ण के साथ अनुरक्त गोपी आत्माओं का रूहानी स्नेह मिलन, हृदय का महारास और बुद्धि का महायोग होता है। लोग कोजागरी व्रत रखते हैं। विष्णु और लक्ष्मी की उपासना करते हैं, मन-बुद्धि से उनके निकट रहते हैं। उनके लिए रात्रि जागरण करते हैं यानी मन में ईश्वरीय ज्ञान का जागरण कर अज्ञान का अंधकार दूर करते हैं। कौमुदी व्रत रखना, दरअसल कुमुद (कमल) के समान मन-वचन-कर्म की पवित्रता से सुख-शांतिपूर्ण समृद्ध जीवन जीने का व्रत लेना है।
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