Explanation : किरातार्जुनीयम् में 18 सर्ग है। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में से एक किरातार्जुनीयम् के रचनाकार भारवि है। इसका कथानक अर्जुन द्वारा भगवान शिव की तपस्या से पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति है। किरातार्जुनीयम् में
18 सर्ग का वर्णन इस प्रकार हैं–
सर्ग-1 : हस्तिनापुर भेजे गये वनेचर का द्वैतवन में आकर युधिष्ठिर से मिलना, दुर्योधन के शासन प्रबन्ध का वर्णन तथा युधिष्ठिर के लिए/द्रौपदी का उत्तेजनापूर्ण कथन।
सर्ग-2 : युधिष्ठिर-भीम का संवाद, व्यास का आगमन।
सर्ग-3 : युधिष्ठिर-व्यास संवाद, व्यास द्वारा अर्जुन को पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए हिमालय पर जाकर तपस्या करने का आदेश, अर्जुन का प्रस्थान।
सर्ग-4 : शरद् ऋतु का वर्णन।
सर्ग-5 : हिमालय पर्वत का वर्णन।
सर्ग-6 : हिमालय पर अर्जुन की तपस्या, तपोविघ्न के लिए इन्द्र द्वारा अप्सराओं को भेजना।
सर्ग-7 : इन्द्र द्वारा प्रेषित गन्धर्वों और अप्सराओं के आने और उनके विलासों का वर्णन।
सर्ग-8 : गन्धर्वों और अप्सराओं का उद्यानविहार और जलक्रीडा।
सर्ग-9 : सायंकाल और चन्द्रोदयवर्णन, सुरतरर्णन तथा प्रभातवर्णन।
सर्ग-10 : वर्षा आदि का वर्णन, अप्सराओं का चेष्टावर्णन तथा उनका प्रयत्न वैफल्य।
सर्ग-11 : मुनिरूप में इन्द्र का आगमन, इन्द्र अर्जुन संवाद, इन्द्र का पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए अर्जुन को शिवाराधना करने का उपदेश।
सर्ग-12 : अर्जुन की तपस्या, शूकर के रूप में मूक नामक दानव का वध के लिए आगमन, तथा किरातेशधारी शिव का भी आगमन।
सर्ग-13 : शूकररूपधारी मूकदानव पर शिव और अर्जुन के बाणों का प्रहार, उस वराह की मृत्यु, बाण के विषय में शिव के अनुचर और अर्जुन का विवाद।
सर्ग-14 : सेना सहित शिव का आगमन और सेना के साथ अर्जुन का युद्ध।
सर्ग-15 : चित्रयुद्ध वर्णन, (चित्रकाव्य)।
सर्ग-16 : शिव और अर्जुन का अस्ययुद्ध।
सर्ग-17 : शिव की सेना के साथ अर्जुन का युद्ध, शिव और अर्जुन का युद्ध।
सर्ग-18 : शिव और अर्जुन का बाहुयुद्ध, शिव का वास्तविक रूप में प्रकट होना, इन्द्रादि का आगमन, अर्जुन को पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति, इन्द्रादि का अर्जुन को विविध अस्त्र देना, सफल सनोरथ अर्जुन का युधिष्ठिर के समीप पहुंचना।
....अगला सवाल पढ़े