करवा चौथ व्रत स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु व सुख-सौभाग्य के लिए ही करती आई हैं। पर यह तब और अच्छा लगेगा, जब साथ में पति भी यह व्रत करें, पत्नी की लंबी आयु के लिए। सनातन धर्म में परिवार की धुरी पत्नी को ही माना गया है। महान संत कवि तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस के अयोध्या कांड की इन महत्वपूर्ण पंक्तियों में पति-पत्नी के पावन सम्बंधों की सार्थक व्याख्या की है। सीता जी वन जा रहे राम जी से कहती हैं- हे नाथ! माता, पिता, बहन, प्यारा भाई, प्यारा परिवार, मित्रों का समुदाय, सास, ससुर, गुरु, स्वजन, सहायक और सुंदर सुशील और सुख देने वाला पुत्र- जहां तक ये स्नेह और नाते हैं, पति के बिना स्त्री को ये सभी सूर्य से बढ़कर तपाने वाले हैं। शरीर, धन, घर, पृथ्वी, नगर और राज्य, पति के बिना स्त्री के लिए यह सब शोक का समाज है-
तनु धनु धामु धरनि पुर राजू। पति बिहीन सबु सोक समाजू॥
करवा चौथ, कार्त्तिक कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है। इस व्रत में सास सूर्योदय से पूर्व अपनी बहू को सरगी के माध्यम से दूध, सेवई आदि खिला देती हैं। फिर शृंगार की वस्तुएं- साड़ी, जेवर आदि करवा चौथ पर देती हैं।
विवाहित महिलाएं इस दिन पूरा शृंगार कर, आभूषण आदि पहन कर शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा करती हैं। व्रत करने वाले दिन सोना नहीं चाहिए। पकवान से भरे दस करवे-मिट्टी के बने बर्तन, गणेश जी के सम्मुख रखते हुए मन में प्रार्थना करें- ‘करुणासिन्धु कपर्दिगणेश! आप मुझ पर प्रसन्न हों।’ करवे में रखे लड्डू पति के माता-पिता को वस्त्र, धन आदि के साथ जरूर दें। ये करवे पूजा के बाद विवाहित महिलाओं को ही बांट देने चाहिए। निराहार रह कर दिन भर गणेश मंत्र का जाप करना चाहिए। रात्रि में चंद्रमा के दिखने पर ही अर्घ्य प्रदान करें। इसके साथ ही, गणेश जी और चतुर्थी माता को भी अर्घ्य देना चाहिए। व्रती केवल मीठा भोजन ही करें। करवा चौथ व्रत 12 या 16 साल तक करना चाहिए। शरीर अगर साथ नहीं दे रहा है, तो इसके बाद उद्यापन कर सकते हैं।
....अगला सवाल पढ़े