जब कभी हमें अपने प्रथम प्रधानमंत्री का ध्यान आता है तब नेहरूजी का चित्र आँखों के सामने उमड़ पड़ता है। क्या ही रोबीला चेहरा था। गौरवांवित मस्तक और अनुभव से भरा हुआ था उनका शरीर। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में डूबी हुई थी उनकी आत्मा।
पं. जवाहरलाल नेहरू एक सुदृढ़ नेता तथा देशभक्त थे। उनका व्यक्तित्व महान् था, उनकी योग्यता अद्वितीय थी, उनका जीवन आदर्श था। सबसे बढ़कर उनकी मानवप्रियता इतिहास में अपनी सानी नहीं रखती। वे योग्य पिता के योग्य पुत्र थे। उनके पिता पं. मोतीलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान् योद्धा थे। उनका जन्म 14 नवंबर, 1889 को इलाहाबाद में हुआ। माता-पिता के इकलौते पुत्र होने से बचपन में दुलार प्यार मिला उसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है।
भारत ने उन्हें जन्म दिया था, पर इंगलैंड में उनका वौद्धिक विकास हुआ। उन्होंने इंगलैंड के हैरो और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा पायी। 1912 ई. में वह ‘बार स्ट लॉ’ होकर हिंदुस्तान लौटे और इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत प्रारंभ की। गांधीजी से भेंट होने के पश्चात् उन्होंने वकालत छोड़ दी। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। वह अनेक बार जेल गये। अनेक यातनाएँ सहीं, पर कभी हार स्वीकार नहीं की। 26 जनवरी, 1929 को उन्होंने जिस पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया, उनके लिए वे सदैव संघर्षरत रहे। वह स्वतंत्रता के लिए अपने आपको सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। कठिन संघर्षों के बाद देश 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ और नेहरू इसके प्रधानमंत्री बने और जीवनपर्यन्त इस पद पर आसीन रहे। 27 मई, 1964 को उनका स्वर्गवास हुआ।
नेहरू समाजवादी विचारधारा के पोषक थे। वह राजनीतिक समस्याओं को राजनीतिज्ञ की तरह ही सुलझाने की कोशिश करते थे। वह अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तटस्थ नीति के पुरोधा थे और जीवनपर्यन्त इसी पर चलते रहे। वे पूर्व और पश्चिम के बीच की कड़ी थे और सारी दुनिया उन्हें शांति का मसीहा मानती है।
नेहरू बच्चों के भी बड़े प्रिय थे। वे कहा करते थे कि आज के बच्चे कल के भविष्य हैं उनके कंधों पर देशाकी बागडोर होगी। इसलिए वे बच्चों को बहुत प्यार करते थे। बच्चे उन्हें प्यार से चाचा के नाम से जानते हैं। प्रतिवर्ष 14 नवंबर को उनका जन्मदिवस बाल-दिवस के रूप में मनाया जाता है।