झारखंड राज्य में मुख्य रूप से तीन तरह की चित्रकला देखने को मिलती है। जिसमें से जादोपटिया चित्रकला प्रमुख हैं।
जादोपटिया चित्रकला : जादोपटिया शब्द दो शब्दों–‘जादों’ (चित्रकार) एवं ‘पटिया’ (कपड़ा या कागज के छोटे-छोटे टुकड़े को जोड़कर बनाया जाने वाला चित्रफलक) के मेल से बना है। इस प्रकार जादोपटिया चित्रकारी का अर्थ है–चित्रकार द्वारा कपड़ा या कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़कर बनाये जाने वाले पट्टियों पर की जाने वाली चित्रकारी। यह चित्रकारी संथालों में प्रचलित है। संथाल समाज के मिथकों पर आधारित इस लोक चित्रकला में संथालों की लोक-गाथाओं, सामाजिक रीति-रिवाजों, धार्मिक विश्वासों, नैतिक मान्यताओं को दर्शाया जाता है। चित्र बनाने में मुख्यतः लाल, हरा, पीला, भूरा एवं काले रंगों का प्रयोग किया जाता है। इन चित्रों की रचना करने वाले को संथाली भाषा में ‘जादो’ कहा जाता है। जादोपटिया चित्रकारी वर्तमान पीढ़ी को अपने पिछली पीढ़ी से विरासत में मिलती रही है। दुर्भाग्य से इस विरासत को पीढ़ी-दर-पीढी ले जाने की प्रवृत्ति विलुप्त होती जा रही है।
सोहराय चित्रकला : यह सोहराय पर्व से जुड़ी चित्रकारी है। सोहराय पर्व पशुओं को श्रद्धा अर्पित करने का पर्व है। यह पर्व दीवाली के एक दिन बाद मनाया जाता है। सोहराय चित्रकारी वर्षा ऋतु के बाद घरों की लिपाई-पुताई से शुरू होती है। कोहबर चित्रकारी की तरह सोहराय चित्रकारी भी जनजातीय औरतों में परम्परागत हुनर के कारण जिंदा है। कोहबर चित्रकारी एवं सोहराय चित्रकारी में मुख्य अंतर प्रतीक चयन में देखने को मिलती है। कोहबर चित्रकारी में सिकी (देवी) का विशेष चित्रण मिलता है जबकि सोहराय चित्रकारी में कला के देवता प्रजापति कोहबर चित्रकारी में स्त्री-पुरुष संबंधों के विविध पक्षों का चित्रण किया जाता है, जबकि सोहराय चित्रकारी में जंगली जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधे का चित्रांकन किया जाता है। चित्रण शैली के लिहाज से सोहराय की दो अलग-अलग शैलियाँ मिलती हो–कुर्मी सोहराय एवं मंझू सोहराय।
कोहबर चित्रकला : प्रत्येक विवाहित महिला अपने पति के घर कोहबर कला का चित्रण करती है। यह चित्रकारी विवाह के मौसम में जनवरी से जून महीने तक की जाती है। इसमें घर-आंगन में विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों में फूल-पत्ती, पेड़-पौधे एवं नर-नारी प्रतीकों का चित्रांकन किया जाता है। चित्रकला की यह लोक शैली विशेष रूप से बिरहोर जनजाति में प्रचलित है। आज भी हजारीबाग जिला एवं आस-पास के क्षेत्रों में बिरहोर जनजाति के घरों (कुम्बास) की दीवारों पर मिट्टी का लेप चढ़ाकर मिट्टी के रंगों से बने कोहबर चित्रकारी को देखा जा सकता है।