भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 97 के अनुसार,
शरीर तथा सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार – धारा 99 में अन्तर्विष्ट निर्बन्धनों के अध्यधीन, हर व्यक्ति को अधिकार है कि वह–
पहला – मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करे।
दूसरा – किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध, जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाला अपराध है, या जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न है, अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की, चाहे जंगम, चाहे स्थावर सम्पत्ति की प्रतिरक्षा करे।