भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 370 के अनुसार,
व्यक्ति का दुर्व्यापार – (1) जो कोई, शोषण के प्रयोजन के लिए—
पहला — धमकियों का प्रयोग करके; या
दूसरा — बल या किसी भी अन्य प्रकार के प्रपीड़न का प्रयोग करके; या
तीसरा — अपहरण द्वारा; या
चौथा — कपट का प्रयोग करके या प्रवंचना द्वारा; या
पाँचवा — शक्ति का दुरुपयोग करके; या
छठवां – उत्प्रेरणा द्वारा, जिसके अन्तर्गत ऐसे किसी व्यक्ति की, जो भर्ती किए गए, परिवहनित, संश्रित, स्थानान्तरित या गृहीत व्यक्ति पर नियंत्रण रखता है, सम्मति प्राप्त करने के लिए भुगतान या फायदे देना या प्राप्त करना भी आता है,
किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों को, (क) भर्ती करता है, (ख) परिवहनित करता है, (ग) संश्रय देता है, (घ) स्थानांतरित करता है, या (ड़) गृहीत करता है, वह दुर्व्यापार का अपराध करता है।
स्पष्टीकरण 1 –’शोषण’ पद के अंतर्गत शारीरिक शोषण का कोई कृत्य या किसी प्रकार का लैंगिक शोषण, दासता या दासता, अधिसेविता के समान व्यवहार या अंगों का बलात अपसारण भी है।
स्पष्टीकरण 2 – दुर्व्यापार के अपराध के अवधारण में पीड़ित की सम्मति महत्वहीन है।
(2) जो कोई दुर्व्यापार का अपराध करेगा वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
(3) जहां अपराध में एक से अधिक व्यक्तियों का दुर्व्यापार अंतर्वलित है, वहाँ वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
(4) जहां अपराध में किया अवयस्कों का दुर्व्यापार अंतर्वलित हैं, वहां वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
(5) जहां अपराध में एक से अधिक अवयस्कों का दुर्व्यापार अंतर्वलित है, वहां वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
(6) यदि किसी व्यक्ति को अवयस्क का एक से अधिक अवसरों पर दुर्व्यापार किए जाने के अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है तो ऐसा व्यक्ति आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
(7) जहां कोई लोक सेवक या कोई पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति के दुर्व्यापार में अन्तर्वलित है, वहां ऐसा लोक सेवक या पुलिस अधिकारी आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास से अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
According to Section 370 of the Indian Penal Code 1860,
Trafficking of person — (1) Whoever, for the purpose of exploitation, (a) recruits, (b) transports, (c) harbors, (d) transfers, or (e) receives, a person or persons, by :
First — using threats, or
Secondly — using force, or any other form of coercion, or
Thirdly — by abduction, or
Fourthly — by practicing fraud, or deception, or
Fifthly — by abuse of power, or
Sixthly — by inducement including the giving or receiving of payments or benefits, in order to achieve the consent of any person having control over the person recruited, transported, harbored, transferred or received, commits the offence of trafficking.
Explanation 1 — The expression “exploitation” shall include any act of physical exploitation or any form of sexual exploitation, slavery or practices similar to slavery, servitude, or the forced removal of organs.
Explanation 2 — The consent of the victim is immaterial in determination of the offence of trafficking.
(2) Whoever commits the offence of trafficking shall be punished with rigorous imprisonment for a term which shall not be less than seven years, but which may extend to ten years and shall also be liable to fine.
(3) Where the offence involves the trafficking of more than one person, it shall be punishable with rigorous imprisonment for a term which shall not be less than ten years but which may extend to imprisonment for life, and shall also be liable to fine.
(4) Where the offence involves the trafficking of a minor, it shall be punishable with rigorous imprisonment for a term which shall not be less than ten years, but which may extend to imprisonment for life, and shall also be liable to fine.
(5) Where the offence involves the trafficking of more than one minor, it shall be punishable with rigorous imprisonment for a term which shall not be less than fourteen years, but which may extend to imprisonment for life, and shall also be liable to fine.
(6) If a person is convicted of the offence of trafficking of minor or more than one occasion, then such person shall be punished with imprisonment for life, which shall mean imprisonment for the remainder of that person’s natural life, and shall also be liable to fine.
(7) When a public servant or police officer is involved in the trafficking of any person then such public servant or police officer shall be punished with imprisonment for life, which shall mean imprisonment for the remainder of that person’s natural life, and shall also be liable to fine.