भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 229 के अनुसार,
जूरी सदस्य या असेसर का प्रतिरूपण – जो कोई किसी मामले में प्रतिरूपण द्वारा या अन्यथा, अपने को यह जानते हुए जूरी सदस्य या असेसर के रूप में तालिकांकित, पेनलित या गृहीत-शपथ साशय करायेगा या होने देना जानते हुए सहन करेगा कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहीत-शपथ होने का विधि द्वारा हकदार नहीं है या यह जानते हुए कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ विधि के प्रतिकूल हुआ है, ऐसे जूरी में या ऐसे असेसर के रूप में स्वेच्छा सेवा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जायेगा।