भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 201 के अनुसार,
अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना – जो कोई यह जानते हुये, या इस विश्वास करने का कारण रखते हुये कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के किये जाने के किसी साक्ष्य का विलोप, इस आशय से कारित करेगा कि अपराधी को वैध दंड से प्रतिच्छादित करे या उस आशय से उस अपराध से संबंधित कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है;
यदि अपराध मृत्यु से दंडनीय हो – यदि वह अपराध जिसके किये जाने का उसे ज्ञान या विश्वास है, मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा;
यदि आजीवन कारावास से दंडनीय हो – और यदि वह अपराध आजीवन कारावास से, या ऐसे कारावास से, जो दस वर्ष तक का हो सकेगा, दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा;
यदि दस वर्ष से कम के कारावास से दंडनीय हो – और यदि वह अपराध ऐसे कारावस से उतनी अवधि के लिये दंडनीय हो, जो दस वर्ष तक की न हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से उतनी अवधि के लिये जो उस अपराध के लिये उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक-चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
दृष्टान्त
क यह जानते हुए कि ख ने य की हत्या की है, ख को दंड से प्रतिच्छादित करने के आशय से मृत शरीर को छिपाने में ख की सहायता करता है। क सात वर्ष के लिये दोनों में से किसी भांति के कारावास से, और जुर्माने से भी दंडनीय है।