भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 116 के अनुसार,
कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण – यदि अपराध न किया जाए – जो कोई कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण करेया यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए और ऐसे दुष्प्रेरण के दंड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबंध इस संहिता में नहीं किया गया है, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से ऐसी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित दीर्घतम अवधि के एक चौथाई भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दंडित किया जाएगा:
यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है, जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो – और यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक हो, जिसका कर्तव्य ऐसे अपराध के लिए किए जाने को निवारित करना हो, तो वह दुष्प्रेरक उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से ऐसी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबन्धित दीर्घतम अवधि के आधे भाग तक की हो सकेगी, ने ऐसे जुर्माना से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दंडित किया जायेगा।
दृष्टान्त
(क) ख को, जो एक लोक सेवक है, ख के पदीय कृत्यों के प्रयोग में क अपने प्रति कुछ अनुग्रह दिखाने के लिए इनाम के रूप में रिश्वत की प्रस्थापना करता है। ख उस रिश्वत को प्रतिगृहीत करने से इन्कार कर देता है। क इस धारा के अधीन दंडनीय है।
(ख) मिथ्या साक्ष्य देने के लिए ख को क उकसाता है। यहाँ, यदि ख मिथ्या साक्ष्य न दे, तो भी क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है, और वह तद्नुसार दंडनीय है।
(ग) क, एक पुलिस आफिसर, जिसका कर्तव्य लूट को निवारित करना है, लूट किए जाने का दुष्प्रेरण करता है। यहाँ, यद्यपि वह लूट नहीं की जाती, क उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से, और जुर्माने से भी, दंंडनीय है।
(घ) क द्वारा, जो एक पुलिस आफिसर है, और जिसका कर्तव्य लूट को निवारित करना है, उस अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण ख करता है यहाँ यद्यपि वह लूट न की जाए, ख लूट के अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से, और जुर्माने से भी, दंडनीय है।