Explanation : आईएनए के अधिकारियों पर मुकदमा नवंबर 1945 में चलाया गया था। बोस आई.एन.ए. के सर्वोच्च सेनापति थे। 21 अक्टूबर, 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की एक अस्थायी सरकार का गठन किया, जिसे जापान, जर्मनी, चीन, इटली, कोरिया, फिलीपींस, आयरलैंड आदि देशों ने मान्यता भी प्रदान कर दी। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज (आई.एन.ए.) का स्वयं निरीक्षण करके उसका पुनसँगठन किया। फौज को अभिवादन में 'जय हिंद' कहना था।
आजाद हिंद का भारत को स्वतंत्र कराने का सपना अप्रैल 1944 में समयपूर्व वर्ष के शुरू होने के कारण तथा जापान की स्थिति द्वितीय विश्व युद्ध में खराब होने के कारण पूरी न हो सकी। जिसके बाद भारत में आजाद हिंद फौज ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसके बाद आजाद हिंद फौज के सैनिकों और अधिकारियों को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया तथा उन पर नवंबर 1945 में दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया गया। जब इन अफसरों पर मुकदमा चलाया गया तो संपूर्ण देश में इसका विरोध किया गया। इस मुकदमे के तीन मुख्य अभियुक्त थे–मेजर शाहनवाज खां, कर्नल प्रेम सहगल और कर्नल गुरुदयाल सिंह ढिल्लो। इन तीनों पर कोर्ट मार्शल का मुकदमा चला, जिसका कांग्रेस, मुस्लिम लीग, अकालीदल, कम्यूनिस्ट पार्टी सहित सभी ने विरोध किया और रिहाई की मांग की।
इनकी पैरवी के लिए भारत के प्रसिद्ध वकील पं. जवाहर लाल नेहरू, मुहम्मद अली जिन्ना, तेजबहादुर सपू, कैलाश नाथ काटजू, आसफ अली ने वर्षों बाद पुन: वकालत की। किंतु सरकार ने तीनों को मृत्युदंड की सजा सुनाई। इस निर्णय के विरोध में पूरे देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई। देश के आक्रोश को देखते हुए वायसराय लार्ड वैवेल ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर उनकी मृत्युदंड की सजा को क्षमा कर दिया।
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