मैं जो अन्नम्मट्टोपाध्याय नाम करके हूं सो मैं तर्कसंग्रह नाम क ग्रंथ को करता हूं क्या करके करता हूँ, संपूर्ण विश्वका स्वामी जो परमेश्वर उसको हृदयमें स्थापन करके अर्थात् निरंतर उसका ब्यान करके फिर क्या करके, अपने विद्या गुरु को वंदना करके इतने करके ग्रंथ के आदिमें ईश्वरका और गुरुका नमस्काररूप मंगलमी दिखा दिया।
यद्यपि आगे पूर्वले आचार्यों के बनाये हुए ग्रन्थ बहुतसे हैं तथापि उनके पढनेसे जलदी पदार्थों का ज्ञान नहीं होता है क्योंकि वह अविकठिन हैं।