होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया में कहा-गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। में न जाने कब लौटूं। जरा मेरी लाठी दे दे।
घनिया के दोनों हाथ गोबर से भरे थे। उपले पाथकर पायी थी। बोली- अरे, कुछ रस-पानी तो कर लो। ऐसी जल्दी क्या है।
होरी न अपने झुरियों से भरे हुए माथे को सिकोड़कर कहा-तुझे रस-पानी की पड़ी है, मुझे यह चिंता है कि अबेर हो गयी तो मालिक से भेट न होगी। असमान पूजा करने लगेंगे, तो घंटों बैठे बीत जायगा।
“इसी से तो कहती हैं, कुछ जलपान कर लो। और आज न जानोगे तो कौन हरज होगा। अभी तो परसों गये थे।’