डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन, शिक्षा और देश सेवा के लिए समर्पित था। उनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सीतम्मा था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा तिरुपति और वेल्लूर में हुई। वे बहुत मेधावी थे। 12 साल की उम्र में ही उन्हें बाइबिल और स्वामी विवेकानंद के दर्शन का ज्ञान हो गया था। आगे की पढ़ाई उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से की। उन्होंने दर्शनशास्त्र में एम.ए. की डिग्री हासिल की। उसके बाद वे मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में सहायक अध्यापक के रूप में छात्रों को पढ़ाने लगे। अपने दार्शनिक ज्ञान के कारण वे विदेशों में भी लोकप्रिय हो गए। कई सालों तक वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी शिक्षक रहे। उन्होंने अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया था। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो डॉ. राधाकृष्णन ने यूनेस्को में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1949 से 1952 तक वे सोवियत संघ में भारत के राजदूत भी रहे। 1952 में उन्हें भारत का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। 1962 में वह भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने। इस पद पर वे 1967 तक आसीन रहे। उन्हें कई पुरस्कार भी मिले थे। किताबें भी लिखीं, जिनमें ‘भारतीय दर्शन’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। अंग्रेजों के राज में डॉ. राधाकृष्णन को ‘नाइटहुड’ यानी ‘सर’ की उपाधि दी गई थी। 1954 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया। उन्हें विश्व शांति पुरस्कार’ से भी नवाजा गया था। इसके अलावा कई बार नोबेल पुरस्कार के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था। राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे बहुत ही विनम्र स्वभाव के थे। हर आदमी उनसे आसानी से मिल सकता था। उनके कार्यकाल में ही राष्ट्रपति भवन आम जनता के लिए खोला गया था। 17 अप्रैल, 1975 को इस महान विद्वान का निधन हो गया।