Explanation : दल बदल कानून भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची के द्वारा लागू होता है। जिसे 'दल बदल विरोधी कानून' (Anti-Defection Law) कहा जाता है और यह वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के द्वारा लाया गया है। दल बदल निरोधक अधिनियम 15 फरवरी, 1985 को पारित हुआ और 1 मार्च, 1985 को देश में लागू हुआ था। इसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ और पद के लालच में दल बदल करने वाले जन-प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देना है, जिससे संसद की स्थिरता बनी रहे। भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची के पैराग्राफ़ 6 के अनुसार स्पीकर या चेयरपर्सन का दल-बदल को लेकर फ़ैसला आख़िरी होगा। पैराग्राफ़ 7 में कहा गया है कि कोई कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता। लेकिन 1991 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 10वीं अनुसूची को वैध तो ठहराया लेकिन पैराग्राफ़ 7 को असंवेधानिक क़रार दे दिया।
कब-कब लागू होगा दल-बदल क़ानून
1. अगर कोई विधायक या सांसद ख़ुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है।
2. अगर कोई निर्वाचित विधायक या सांसद पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाता है।
3. अगर कोई सदस्य पार्टी ह्विप के बावजूद वोट नहीं करता।
4. अगर कोई सदस्य सदन में पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है।
इन परिस्थितियों में दल-बदल कानून लागू नहीं होगा
1. जब समस्त राजनीतिक पार्टी अन्य राजनीति पार्टी के साथ मिल जाती है।
2. अगर किसी पार्टी के निर्वाचित सदस्य एक नई पार्टी बना लेते हैं।
3. अगर किसी पार्टी के सदस्य दो पार्टियों का विलय स्वीकार नहीं करते और विलय के समय अलग ग्रुप में रहना स्वीकार करते है।
4. जब किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य अलग होकर नई पार्टी में शामिल हो जाते हैं।
दल-बदल अधिनियम के अपवाद
यदि कोई व्यक्ति स्पीकर या अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है तो वह अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकता है और जब वह पद छोड़ता है तो फिर से पार्टी में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
यदि किसी पार्टी के एक-तिहाई विधायकों ने विलय के पक्ष में मतदान किया है तो उस पार्टी का किसी दूसरी पार्टी में विलय किया जा सकता है।
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