Explanation : दल बदल कानून किस पर लागू होता है। इससे पहले जानें कि 'दल बदल विरोधी कानून' (Anti-Defection Law) क्या है? दल बदल विरोधी कानून संसद की आंतरिक राजनीति और सांसदों/विधायकों की खरीद-फरोख्त को रोकने का एक कारगर तरीका है। इस कानून को यानि दल बदल निरोधक अधिनियम को 15 फरवरी, 1985 में पारित किया गया और 1 मार्च, 1985 को देश में लागू हुआ। इससे दल बदल करने वाले जन-प्रतिनिधियों को अयोग्य करार दिया जा सकता है। बता दे कि 1967 में हरियाणा के एक विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली, जिसके बाद आया राम गया राम प्रचलित हो गया। 1985 से पहले दल-बदल के ख़िलाफ़ कोई क़ानून नहीं था। इस तरह दल बदल विरोधी कानून राजीव गांधी प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुआ।
कब-कब लागू होगा दल-बदल क़ानून
1. अगर कोई विधायक या सांसद ख़ुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है।
2. अगर कोई निर्वाचित विधायक या सांसद पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाता है।
3. अगर कोई सदस्य पार्टी ह्विप के बावजूद वोट नहीं करता।
4. अगर कोई सदस्य सदन में पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है।
इन परिस्थितियों में दल-बदल कानून लागू नहीं होगा
1. जब समस्त राजनीतिक पार्टी अन्य राजनीति पार्टी के साथ मिल जाती है।
2. अगर किसी पार्टी के निर्वाचित सदस्य एक नई पार्टी बना लेते हैं।
3. अगर किसी पार्टी के सदस्य दो पार्टियों का विलय स्वीकार नहीं करते और विलय के समय अलग ग्रुप में रहना स्वीकार करते है।
4. जब किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य अलग होकर नई पार्टी में शामिल हो जाते हैं।
दल-बदल अधिनियम के अपवाद
यदि कोई व्यक्ति स्पीकर या अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है तो वह अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकता है और जब वह पद छोड़ता है तो फिर से पार्टी में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
यदि किसी पार्टी के एक-तिहाई विधायकों ने विलय के पक्ष में मतदान किया है तो उस पार्टी का किसी दूसरी पार्टी में विलय किया जा सकता है।
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