1. छुई-मुई का पौधा छूने से क्यों मुरछा जाता है?
छुई-मुई के पौधे की पत्तियां स्पर्श के प्रति संवेदनशील होती हैं। जब हम इनकी पत्ती को छूते हैं तो पतली दीवारों वाली कोशिकाओं से तने में चला जाता है, फलस्वरूप ये कोशिकायों सिकुड़ जाती हैं और पत्तियों का तनाव समाप्त हो जाता है, जिससे उनमें ऐंठन पैदा हो जाती है। इसी को हम छुई-मुई का मुरझाना कहते हैं। इसी मुरझाने के गुण के कारण ही यह पौधा विश्व भर में प्रसिद्ध है।
2. किसी लकड़ी के टुकड़े की तुलना में धातु का टुकड़ा सर्दियों में अधिक ठंडा और गर्मियों में अधिक गर्म क्यों होता है?
ऊष्मा सदैव उच्च तापमान वाली वस्तु से निम्न तापमान वाली वस्तु की ओर प्रवाहित होती रहती है। सर्दियों में व्यक्ति के शरीर का तापमान वातावरण के तापमान से अधिक होता है। चूंकि धातु ऊष्मा इस धातु के टुकड़े की ओर प्रवाहित होने लगती है। अत: धातु का टुकड़ा शरीर की तुलना में ठंडा दिखाई देता है लेकिन लकड़ी ऊष्मा की कुचालक होती है इसलिए उसे छूने पर बदन की गर्मी उसकी ओर प्रवाहित नहीं होती, अत: समान तापमान होने के बावजूद लकड़ी धातु की तुलना मे शरीर से ठंडी नहीं प्रतीत होती, गर्मियों में व्यक्ति के शरीर का तापमान वातावरण के तापमान से न्यून होता है। धातु को छूने से धातु की ऊष्मा व्यक्ति के शरीर की ओर प्रवाहित होने लगती है, जिससे कि हमें यह गर्म लगती है।
3. किसी तालाव में केरोसीन तेल छिड़कने से मलेरिया को दूर करने में किस प्रकार सहायता मिलती है?
कोई भी स्थिर जलाशय (तालाब) मलेरिया वाले मच्छरों के पनपने के लिए उत्तरदायी होता है। मच्छरों के डिंब (लार्वा) पानी के भीतर विकसित होते है, जिन्हें सांस लेने के लिए पानी की सतह के ऊपर आना पड़ता है। लेकिन पानी के केरोसीन छिड़कने से इसकी सतह पर तेल की एक मोटी परत बन जाती है और डिंब सतह से बाहर नहीं निकल पाते और अंदर ही दम तोड़ देते हैं। मच्छरों को इस प्रकार समाप्त करने से मलेरिया को नियंत्रित किया जा सकता है।
4. पेट्रोल में लगी हुई आग को पानी के माध्यम से नहीं बुझाया जा सकता क्यों?
पानी भारी होने के कारण नीचे की ओर चला जाता है, जबकि पेट्रोल हल्का होने के कारण पानी के ऊपर तैरता रहता है, अत: आग सतत लगी रहती है। इसलिए पेट्रोल के लगी हुई आग को पानी के माध्यम से नहीं बुझाया जा सकता।