भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 144 के अनुसार, घातक आयुधों से सज्जित होकर विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होना – जो कोई किसी घातक आयुध से, या किसी ऐसी चीज से, जिससे आक्रमण आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी सम्भाव्य है, सज्जित होते हुए किसी विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 143 के अनुसार, दंड – जो कोई विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, दंडित किया जाएगा। According to Section 143 of the Indian Penal Code 1860, Punishment — Whoever is […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 142 के अनुसार, विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होना – जो कोई उन तथयों से परिचित होते हुए, जो किसी जमाव को विधिविरुद्ध जमाव बनाते हैं, उस जमाव में साशय सम्मिलित होता है, या उसमें बना रहता है, वह विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य है, यह कहा जाता है।
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 139 के अनुसार, कुछ अधिनियमों के अध्यधीन व्यक्ति – कोई व्यक्ति, जो आर्मी एक्ट, सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46), नेवल डिसिप्लिन एक्ट, इंडियन नेवी (डिसिप्लिन) एक्ट, 1934 (1934 का 34), एयरफोर्स एक्ट या वायुसेना अधिनियम, 1950 (1950 का 45) के अध्यधीन है, इस अध्याय में परिभाषित अपराधों में […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 122 के अनुसार, भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना – जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध या तो युद्ध करने या युद्ध करने की तैयारी करने के आशय से पुरुष, आयुध या गोला-बारूद संग्रह करेगा, या अन्यथा युुद्ध करने की तैयारी करेगा, […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 120 (ख) के अनुसार, आपराधिक षड़यंत्र का दंड – (1) जो कोई मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठिन कारावास से दंडनीय अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र में शरीक होगा, यदि ऐसे षड़यंत्र के दंड के लिए इस संहिता में कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 120 के अनुसार, कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना – जो कोई उस अपराध का किया जाना, जो कारावास से दंडनीय है, सुकर बनाने के आशय से या सम्भाव्यत: तदद्वारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए– ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 116 के अनुसार, कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण – यदि अपराध न किया जाए – जो कोई कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण करेया यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए और ऐसे दुष्प्रेरण के दंड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबंध इस संहिता में नहीं […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 110 के अनुसार, दुष्प्रेरण का दंड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है – जो कोई किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति ने दुष्प्रेरक के आशय या ज्ञान से भिन्न आशय या ज्ञान से वह कार्य किया […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 107 के अनुसार, किसी बात का दुष्प्रेरण – वह व्यक्ति किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो – पहला – उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है; अथवा दूसरा – उस बात को करने के लिए किसी षड्यन्त्र में एक या अधिक […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 99 के अनुसार, कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है – यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद्भभावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक सेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयत्न किया […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 98 के अनुसार, ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित्त आदि हो – जबकि कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्तविकृति या मत्तता के कारण, या उस व्यक्ति के किसी […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 97 के अनुसार, शरीर तथा सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार – धारा 99 में अन्तर्विष्ट निर्बन्धनों के अध्यधीन, हर व्यक्ति को अधिकार है कि वह– पहला – मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करे। […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 92 के अनुसार, सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य – कोई बात, जो किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक, यद्यपि, उसकी सम्मति के बिना, की गई है, ऐसी किसी अपहानि के कारण, जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित की […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 91 के अनुसार, ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वत: अपराध है – धारा 87, 88 और 89 के अपवादों का विस्तार उन कार्यों पर नहीं है जो उस अपहानि के बिना भी स्वत: अपराध है जो उस व्यक्ति को, जो सम्मति देता है या […]