भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 354 क के अनुसार, लैंगिक उत्पीड़न और लैंगिक उत्पीड़न के लिए दंड — (1) ऐसा कोई निम्नलिखित कार्य, अर्थात्– (i) शारीरिक सम्पर्क और अग्रक्रियाएँ करने, जिनमें अवांछनीय और लैंगिक संबंध बनाने संबंधी स्पष्ट प्रस्ताव अंतवंलित हों; या (ii) लैंगिक स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध करने; या (iii) […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 354 के अनुसार, स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग – जो कोई किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए कि तदद्वारा वह उसकी लज्जा भंग करेगा, उस स्त्री पर हमला करेगा या […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 325 के अनुसार, स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के लिए दंड – उस दशा के सिवाय, जिसके लिये धारा 335 मे उपबंध है, जो कोई स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 323 के अनुसार, स्वेच्छया उपहति कारित करने के लिए दण्ड – उस दशा के सिवाय, जिसके लिये धारा 334 में उपबंध है, जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 307 के अनुसार, हत्या करने का प्रयत्न – जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह उस कार्य द्वारा मृत्यु कारित कर देता तो वह हत्या का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 304 बी के अनुसार, दहेज मृत्यु – (1) जहाँ किसी स्त्री की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है कि उसकी मृत्यु के कुछ […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 304 के अनुसार, हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानववध के लिये दंड – जो कोई ऐसा आपराधिक मानव वध करेगा, जो हत्या की कोटि में नही आता है, यदि वह कार्य जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गयी है, मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु होना […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 302 के अनुसार, हत्या के लिए दंड – जो कोई हत्या करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित किया जायेबा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। According to Section 302 of the Indian Penal Code 1860, Punishment for murder — Whoever commits murder shall be punished with death, […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 295 क के अनुसार, विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों – जो कोई भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के विमर्शित और […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 294 क के अनुसार, लाटरी कार्यालय रखना – जो कोई ऐसी कोई लाटरी, जो न तो राज्य लाटरी हो, और न तत्संबंधित राज्य-सरकार द्वारा प्राधिकृत लाटरी हो, निकालने के प्रयोजन के लिये कोई कार्यालय या स्थान रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 279 के अनुसार, लोक-मार्ग पर उतावलेपन से वाहन चलाना या हांकना – जो कोई किसी लोक-मार्ग पर ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई वाहन चलायेगा या सवार होकर हांकेगा जिससे मानव-जीवन संकटापन्न हो जाए या किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना सम्भाव्य हो, वह दोनों में […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 250 के अनुसार, ऐसे सिक्के का परिदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया हो कि उसे परिवर्तित किया गया है – जो कोई किसी ऐसे सिक्के को कब्जे में रखते हुये, जिसके बारे में धारा 246 या 248 में परिभाषित अपराध किया गया हो, और जिसके बारे […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 229 क के अनुसार, जमानत या बंधपत्र पर छोड़े गये व्यक्ति द्वारा न्यायालय में हाजिर होने में असफलता – जो कोई, किसी अपराध से आरोपित किये जाने पर और जमानत पर या अपने बधंपत्र पर छोड़ दिये जाने पर जमानत या बंधपत्र के निबंधों के अनुसार न्यायालय में पर्याप्त […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 229 के अनुसार, जूरी सदस्य या असेसर का प्रतिरूपण – जो कोई किसी मामले में प्रतिरूपण द्वारा या अन्यथा, अपने को यह जानते हुए जूरी सदस्य या असेसर के रूप में तालिकांकित, पेनलित या गृहीत-शपथ साशय करायेगा या होने देना जानते हुए सहन करेगा कि वह इस प्रकार तालिकांकित, […]
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 211 के अनुसार, क्षति करने के आशय से अपराध का मिथ्या आरोप – जो कोई किसी व्यक्ति को यह जानते हुए कि उस व्यक्ति को विरुद्ध ऐसी कार्यवाही या आरोप के लिये कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है, क्षतिकारित करने के आशय से उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई […]