Explanation : ब्रजभाषा गद्य का सूत्रपात संवत् 1400 के करीब हुआ। कृष्ण-भक्तिधारा के कवियों तथा भक्तों ने उसके विकास और संवर्द्धन में विशेष योग दिया। सत्रहवीं शताब्दी तक की लिखी हुई जो रचनाएँ उपलब्ध हैं, उनमें गोस्वामी विट्ठलनाथ का श्रृंगार रस-मंडन', गोकुलनाथजी के 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' और 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता', नाभादासजी का 'अष्टयाम', बैकुंठमणि शुक्ल के 'अगहन-माहात्म्य' और 'वैशाख-माहात्म्य' तथा लल्लूलाल कृत 'माधव-विलास' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
ब्रजभाषा बोली का प्रभाव क्षेत्र भरतपुर, धौलपुर, मथुरा, अलीगढ़, आगरा, एटा, मैनपुरी, बुलंदशहर, ग्वालियर तथा बदायूँ, बरेली, नैनीताल, की तराई में फैला है। विस्तृत क्षेत्र के कारण स्थानीय प्रभाव के अंतर्गत इसकी कई उपबोलियाँ विकसित हो गई। धौलपुर और पूर्वी जयपुर की बोली डांगी; एटा, मैनपुरी, बदायूँ, बरेली जिलों की बोली, अंतर्वेदी तथा नैनीताल को बोली भूक्सा उपबोलियों के उदाहरण हैं। मथुरा, अलीगढ़ तथा आगरा की बोली ही आदर्श ब्रजभाषा है। ब्रजभाषी लोगों की संख्या दो करोड़ से अधिक है। ब्रजभाषा के प्रचुर साहित्य में सूरदास, बिहारी, भूषण, मतिराम, चिंतामणि, पद्माकर, भारतेंदु तथा जगन्नाथदास रत्नाकर के नाम प्रमुख हैं।
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