कोविड वैक्सीन की बूस्टर डोज (booster dose) : कोरोना संक्रमण (coronavirus infection) के खिलाफ टीकाकरण अभियान में अभी वैक्सीन की दो डोज लगाई जा रही है। चूंकि अभी इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है कि दोनों डोज का प्रभाव कितने समय तक बना रहेगा, इसलिए कई देशों में साल में एक डोज यानी बूस्टर डोज लगाने पर विचार किया जा रहा है। ब्रिटेन में कोरोना वायरस के डेल्टा और अल्फा वैरिएंट के मामले बढ़ रहे हैं, इसलिए वहां बूस्टरडोज लगाने पर विचार किया जा रहा है। ब्रिटेन में वालंटियर को सात अलग-अलग वैक्सीन लगाकर बूस्टर डोज का अध्ययन किया जा रहा है।
सऊदी अरब ने फाइजर वैक्सीन को बूस्टर डोज बनाया सऊदी अरब ने तो फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन को बूस्टर डोज बना दिया है। सऊदी अरब में जिन लोगों को पहले चीन निर्मित वैक्सीन लगाई थी, उन्हें बूस्टर डोज के रूप में फाइजर की वैक्सीन लगाई जा रही है। बहरीन ने भी लोगों को बूस्टर डोज लगाने की अनुमति दे दी है। अमेरिका में भी चल रहा ट्रायल बूस्टर डोज पर अमेरिका भी ट्रायल चल रहा है। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ (एनआइएच) ने एक जून को कहा था कि उसने उन लोगों पर बूस्टर डोज का परीक्षण शुरू किया है, जिन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज लगवा ली है। इस परीक्षण में बूस्टर डोज की सुरक्षा और प्रतिरक्षा का मूल्यांकन किया जा रहा है।
बूस्टर डोज (booster shot) एक खास तरीके पर काम करते हैं, जिसे इम्युनोलॉजिकल मैमोरी कहते हैं। हमारा इम्यून सिस्टम उस वैक्सीन को याद रखता है, जो शरीर को पहले दिया जा चुका है। ऐसे में तयशुदा समय के बाद वैक्सीन की छोटी खुराक यानी बूस्टर का लगना इम्यून सिस्टम को तुरंत सचेत करता है और वो ज्यादा बेहतर ढंग से प्रतिक्रिया करता है। अलग-अलग बीमारियों के लिए बूस्टर डोज अलग तरह से काम करता है। जैसे बच्चों की बीमारियों में, जैसे काली खांसी के लिए बूस्टर जल्दी लगते हैं। वहीं टिटनेस के लिए WHO कहता है कि इसका बूस्टर 10 सालों में लिया जाना चाहिए क्योंकि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट चुकी होती है।