परमाणु अप्रसार संधि (Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons) संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में 1968 में बनी थी तथा 1970 में लागू की गई थी। इस संधि के द्वारा दुनिया के सभी देशों को दो वर्गों में बांट दिया गया– पांच परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र तथा अन्य सभी गैर-परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र। इस संधि की शर्तों के अनुसार गैर-परमाणु शक्ति सम्पन्न देश भविष्य में परमाणु हथियारों का निर्माण अथवा आयात नहीं कर सकते हैं। इन देशों को यह अधिकार दिया गया था कि संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद वे अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की देख-रेख में परमाणु ऊर्जा का केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए प्रयोग अवश्य कर सकते हैं। लेकिन इस संधि द्वारा परमाणु हथियार सम्पन्न राष्ट्रों द्वारा परमाणु हथियारों के उत्पादन या भंडारण पर कोई रोक नही लगाई गई। अभी तक इस संधि पर 191 सदस्य देश मुहर लगा चुके हैं जिनमें पांच परमाणु हथियार संपन्न देश भी शामिल हैं। वर्ष 1995 में इस संधि की मियाद को अनिश्चितकालीन अवधि के लिए बढ़ा दिया गया था।
तमाम दबाओं के बाद भी भारत ने निम्न कारणों से इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये–
1. यह संधि भेद-भावकारी व पक्षपात-पूर्ण है, क्योंकि यह परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों पर हथियार रखने व उत्पादन की रोक नहीं लगाती, जबकि यह गैर-परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों पर परमाणु हथियारों के उत्पादन या अर्जन पर रोक लगाती है।
2. भारत के अनुसार विश्व शांति के लिए सभी परमाणु हथियारों को समाप्त किया जाना। अथवा सार्वभौमिक परमाणु निशस्त्रीकरण आवश्यक है। लेकिन यह संधि परमाणु हथियारों को समाप्त करने की बजाय उनके विकास पर रोक लगाती है। संधि के बाद भी पांच बड़े देशों में परमाणु हथियारों का अस्तित्व बना रहेगा।
3. चीन तथा पाकिस्तान के परमाणु खतरे को देखते हुये भारत अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियारों का विकल्प बंद नहीं करना चाहता इस संधि पर हस्ताक्षर करने के उपरांत भारत का यह विकल्प बंद हो जाएगा।