बारदोली सत्याग्रह राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गुजरात का सबसे संगठित, व्यापक एवं सफल कृषक आंदोलन था। यह लगान अदायगी न करने के संबंध में चलाया गया था। वर्ष 1927 में कपास के मूल्य में गिरावट आने के बावजूद सरकार ने बारदोली में राजस्व दर को 30% बढ़ा दिया था। इस आंदोलन में न केवल भू-स्वामी किसानों ने, बल्कि कालीपराग (काले लोग) ने भी भाग लिया।
कालीपरा जनजाति की स्थिति बदतर थी, उन्हें हाली पद्धति के अंतर्गत उच्च जातियों के यहां पुश्तैनी मजदूर के रूप में कार्य करना होता था। वर्ष 1927 में कालीपराजों के वार्षिक सम्मेलन में महात्मा गांधीजी ने इनका नाम परिवर्तित कर 'रानीपराज' (वनवासी) कर दिया।
वल्लभभाई पटेल, कनवरजी, कल्याणजी तथा दयालजी ने गुजरात किसानों को संगठित किया गया वर्ष 1927 में भीम भाई नाइक और श्विदासानी के नेतृत्व में किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल बंबई सरकार के राजस्व विभाग के प्रमुख से मिला। सरकार ने लगान वृद्धि को घटाकार 21.97% कर दिया, लेकिन किसान इससे संतुष्ट नहीं हुए।
इसके पश्चात् काकोद संभाग के बामलो गांव में 60 गांवों के प्रतिनिधियों की एक बैठक हुई जिसमें वल्लभभाई पटेल को आंदोलन का नेतृत्व सौंपा गया। आंदोलन को देखते हुए लॉर्ड इरविन ने बंबई के गवर्नर विल्सन को मामला निपटाने का आदेश दिया। अंत में सरकार ने ब्रुमफिल्ड की अध्यक्षता में इसकी जांच के आदेश दिए। जांच में 30% लगान की वृद्धि को अनुचित बताया गया और इसे घटाकर 6.03% कर दिया गया। बारदोली सत्याग्रह में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इसमें मीठबेन, भक्तिबा, मनीबेन पटेल, शारदाबेन शाह तथा शारदा मेहता प्रमुख थी। इसी आंदोलन के दौरान यहां की महिलाओं की ओर से गांधीजी ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि दी थी। स्टोरी आॅफ बारदोली नामक पुस्तक की रचना गांधीजी के निजी सचिव महादेव देसाई ने की थी। ....अगला सवाल पढ़े
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