प्रसन्नराघव के लेखक जयदेव ने कविताकामिनी के अड्डों के रूप कवियों को प्रतिष्ठित करते हुए बाण को पच्चबाण (मदन) निरूपित किया :
यस्याश्चौरश्चिकुरविकर: कर्णपूरो मयूरो।
भासो हास: कविकुलगुरु: कालिदासो विलास:।।
हर्षों हर्षों ह्रदयवसति: पच्चबाणवस्तु बाण:।
केषां नैषा कथय कविताकामिनी कौतुकाय।।
जिस कविता कामिनी का केशकताप चोर कवि है, कर्णपूर मयूर कवि हैं, हास्य भास कवि हैं, विलास कविकुलगुरु कालिदास और ह्रदय में बसने वाला कामदेव बाण कवि। मधुरविजय की लेखिका गंगा देवी के अनुसार बाणभट्ट की भारती (सरस्वती) वीणा की सुमधुर तान का हरण कर लेती है :
वाणीपाणिपरामृष्टवीणानिक्वाणहारिणीम्।
भावयन्ति कथं वाsन्ये, भट्टबाणस्य भारतीम्।।
'नलचम्पू' के रचनाकार त्रिविक्रमभट्ट ने बाणभट्ट की रचनाओं की लोकप्रियता की प्रशंसा इस प्रकार की है :
शश्वद्बाणद्वितीयेन नमदाकारधारिणा।
धनुषेव गुणाढ्येन नि:शेषो रज्जितो
श्रीचंद्रदेव ने बाणभट्ट के लिए अपनी प्रशंसा इस प्रकार समर्पित किये हैं :
आसर्वत्र गभीरधीरकविता-विन्ध्याटवी-चातुरी
सच्चारी कविकुम्भिकुम्भभिदुरो बाणस्तुपच्चानन:।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
महानुजंग, वश्चवाणी कविचक्रवर्ती-हर्षवर्धन, गद्यसम्राट-बलदेव, वाणी वाणो बभूव-गोवर्धनाचार्य, कविता कानन केसरी-चंद्रदेव, वाणी बाणस्य मधुरशीलस्य-धर्मदास और हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार बाण का असली नाम पहले दक्ष था।
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