बाणभट्ट के गद्य की रीति क्या है?

(A) वैदर्भी
(B) गौड़ी
(C) पाच्चाली
(D) उपर्युक्त में कोई नहीं

Question Asked : [TGT Exam 2013]

Answer : पाच्चाली

बाणभट्ट के गद्य (कादम्बरी) की रीति पाच्चाली रीति की विशेषता है कि उसमें शब्द और अर्थ का समन्वय और संतुलन होता है। आदर्श गद्य शैली के स्वरूप का उल्लेख बाण ने हर्षचरित की प्रस्तावना में किया है :
'नवोs​अर्थो जातिरग्राम्या श्लेषोsक्लिष्ट: स्फुटो रस:।
विकटाक्षरबन्धश्च कृत्स्नमेकत्र दुर्लभम्।।
अर्थात् अर्थ की नवीनता, सुरुचिपूर्ण स्वाभावोक्ति, सरल श्लेष, रस की स्फुटता तथा अक्षरों की विकटबंधता इन सबका किसी काव्य में एक साथ प्राप्त होना कठिन है, जो बाण ने कादम्बरी में पाच्चाली रीति को अपनाया है, जो इस प्रकार के विकटाक्षर बंध युक्त गौड़ी रीति और मधुर एवं सरल पदावली युक्त वैदर्भी रीति का समन्वित रूप है। पाच्चाली रीति की परिभाषा इस प्रकार हैं
'शब्दार्थयो: समो गुम्फ: पाच्चालीरीतिरिष्यते।' (सरस्वतीकण्ठाभरण)
शब्द और अर्थ का समान गुम्फन पाच्चाली रीति मानी जाती है अर्थात् जहां अर्थ के अनुरूप शब्दों का गुम्फन हो, वह पाच्चाली रीति है। बाण ने इसका पूर्णत: निर्वाह ही नहीं अपितु उसका आदर्श हमारे सामने प्रस्तुत किया है।
Tags : संस्कृत संस्कृत प्रश्नोत्तरी
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Web Title : Banabhatta Ke Gadya Ki Riti Kya Hai