रमजान के 30 रोजों के बाद चांद देखकर ईद मनाई जाती है। इसे लोग ईद उल-फितर (Eid Ul Fitr) भी कहते हैं। इस्लामिक कैलेंडर में दो ईद मनाई जाती हैं। दूसरी ईद जो ईद-उल-जुहा या बकरीद के नाम से भी जानी जाती है। ईद-उल-फित्र का यह त्योहार रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर इस्लामिक महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है। यह मुस्लिमों का सबसे बड़ा त्योहार होता है। जिसमें लोग मस्ज़िद में जाकर नमाज़ अदा करते है और एक-दूसरे को गले मिल ईद की मुबारकबाद (Eid Mubarak) देते है।
मीठी ईद और बकरीद में अंतर
इस्लाम धर्म में दो ईद मनाई जाती है। पहली मीठी ईद जिसे रमज़ान महीने की आखिरी रात के बाद मनाया जाता है। दूसरी, रमज़ान महीने के 70 दिन बाद मनाई जाती है, इसे बकरीद कहते हैं। बकरा ईद (Bakra Eid) को कुर्रबानी की ईद माना जाता है। पहली मीठी ईद जिसे ईद उल-फितर कहा जाता है और दूसरी बकरी ईद को ईद उल-जुहा (Eid al-Adha) कहा जाता है।
क्यों मनाई जाती है ईद
मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पवित्र शहर मदीना में ईद-उल-फितर का उत्सव शुरू हुआ। माना जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी। इस जीत की खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया था, इसी दिन को मीठी ईद या ईद-उल-फितर के रुप में मनाया जाता है। काज़ी डॉ सैय्यद उरूज अहमद ने बताया, इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हिजरी संवत 2 यानी 624 ईस्वी में पहली बार (करीब 1400 साल पहले) ईद-उल-फितर मनाया गया था। पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बताया है कि उत्सव मनाने के लिए अल्लाह ने कुरान में पहले से ही 2 सबसे पवित्र दिन बताए हैं। जिन्हें ईद-उल-फितर और ईद-उल-जुहा कहा गया है। इस प्रकार ईद मनाने की परंपरा अस्तित्व में आई।