विश्व बैंक ने 11 अप्रैल, 1955 को अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation) की व्यवस्था संबंधी मसौदा अपने सदस्यों के सामने रखा। जुलाई 1956 में इसके सदस्यों की संख्या 31 हो जाने पर इसकी विधिवत् स्थापना कर दी गयी। 1962 में यह UNO का विशिष्ट अभिकरण बन गया। वर्तमान में 184 देश इसके सदस्य हैं और मुख्यालय वाशिंगटन डी.सी. में है। यह निगम विकासशील देशों में निजी उद्योगों के लिए बिना सरकारी गारंटी के धन की व्यवस्था करता है तथा अतिरिक्त पूँजी विनियोग द्वारा उन्हें प्रोत्साहित करता है, यानि इसका मुख्य कार्य विकासशील देशों के निजी क्षेत्र को समर्थन प्रदान करना है।
अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम के मुख्य उद्देश्य हैं–
1. निजी उद्देश्यों के विकास, सुधार और विस्तार को प्रोत्साहित करना और इसके लिए बिना सरकार की गारंटी के सदस्य देशों में स्थित निजी उद्योगों में निवेश करना।
2. निवेश के अवसरों, देशी और विदेशी निजी पूंजी तथा अनुभवी प्रबंधन को परस्पर मिलाना और उनमें समन्वय स्थापित करना; तथा
3. सदस्य राष्ट्रों में घरेलू और विदेशी व्यक्तिगत पूंजी को उत्पादनशील निवेशों में प्रवाहित कर उन परिस्थितियों को जन्म देना जो विकास में सहायक हों।
स्पष्ट है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम का उद्देश्य निजी उद्योगों के साथ मिलकर, बिना संबंधित सरकार की गारंटी लिये, उनमें पूंजी का निवेश करना है। वास्तव में इस निगम का उद्देश्य निवेश के अवसरों, निजी पूंजी साधनों तथा अनुभवी प्रबंध-कौशल के लिए एक समाशोधन गृह (Clearing house) के रूप में कार्य करना है।