अमेरिका में महाभियोग की प्रक्रिया काफी जटिल होती है। अमेरिकी संविधान के अनुसार अगर कोई संघीय अधिकारी राजद्रोह, रिश्वत लेने, उच्च अपराध और कदाचार में लिप्त होने का दोषी पाया जाता है, तो प्रतिनिधि सभा महाभियोग का औपचारिक रूप से आरोप लगा सकती है। बाद में सीनेट के महाभियोग परीक्षण में दोषी पाए जाने पर उसे पद से हटा दिया जाता है। अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद एक की धारा दो का खंड पांच प्रतिनिधि सभा को महाभियोग की प्रक्रिया पूरी करने की शक्ति प्रदान करता है। वहीं इसी अनुच्छेद की धारा तीन का खंड छह और सात सभी महाभियोग के प्रयास की शक्ति सीनेट को प्रदान करते हैं। जब इसके लिए सीनेट की बैठक होती है, तो वे शपथ या प्रतिज्ञा लेते हैं। राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग लगने की बैठक की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश करते हैं। सभा में उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई सदस्यों को सहमति के बिना संबंधित व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। वहीं अनुच्छेद दो का खंड चार, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और संयुक्त राज्य अमेरिका के सभी लोक सेवकों को महाभियोग, देशद्रोह, रिश्वत या अन्य उच्च अपराध और दुर्व्यवहार के लिए पद से हटाने की शक्ति देता है।
सत्ता के दुरुपयोग के आरोप में अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ 19 दिसंबर 2019 को महाभियोग प्रस्ताव पास हुआ। ट्रंप पर आरोप हैं कि उन्होंने 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में संभावित प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन समेत अपने घरेलू प्रतिद्वंद्वियों की छवि खराब करने के लिए यूक्रेन से गैरकानूनी रूप से मदद मांगी। डोनाल्ड ट्रंप से पहले अमेरिका के दो और राष्ट्रपतियों के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही हुई है। 1868 में एंड्रयू जॉनसन के खिलाफ महाभियोग चला था जब एक सरकारी अधिकारी को गैर कानूनी तरीके से बर्खास्त करने का आरोप उन पर लगा था। इसके 130 साल बाद 1998 में बिल क्लिंटन के खिलाफ महाभियोग चला था जब मोनिका लेवेंस्की ने उनके खिलाफ सेक्सुअल हैरसमेंट के आरोप लगाए थे। हालांकि दोनों ही मामलों में दोनों राष्ट्रपतियों को बरी कर दिया गया और दोनों ने कार्यकाल पूरा किया था। इसके अलावा, 1974 में वॉटरगेट स्कैंडल के चलते रिचर्ड निक्सन के खिलाफ भी महाभियोग चल सकता था लेकिन उससे पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।